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ఉందని
मोमा शकाप्र
నివాసం నిరంతరం నిరంతరం పోరాం రాం రాం రాం సంస్థలు
प्ररूपण करे, तो रागद्वेष नाम पावै । बहुरि वह कहै है जो रागद्वेषनाहीं है, तो अन्यमत बुरे, जैनमत भला, ऐसा कैसे कहो हो । साम्यभाव होय, तौ सर्वको समान जानौं, मतपक्ष काहे
कों करो हो । ताकों कहिए है—चुराकौं बुरा कहें हैं भलाकौं भला कहें हैं, यामें रागद्वेष कहा || || किया। बहुरि बुरा भलाकौं समान जानना तो अज्ञानभाव है, साम्यभाव नाहीं । बहुरि वह कहै है जो सर्व मतनिका प्रयोजन तो एक ही है, तातै सर्वकौं समान जानना । ताकों कहिए है-प्रयोजन एक ही होय तौ नानामत काहेकौं कहिए। एक मतविषै तो एक प्रयोजन लिए अनेकप्रकार व्यख्यान हो है, ताकौं जुदा मत कौन कहै है । परन्तु प्रयोजन ही भिन्न भिन्न हो है सो ही दिखाईए है—जैनमतविषै एक वीतरागभाव पोषनेका प्रयोजन है, सो कथानिविषै, | वा लोकादिका निरूपणविषै वा आचरणविषै वा तत्त्वनिविषै जहां तहां वीतरागता हीकों पुष्टता करी है । बहुरि अन्य मतनिविष सरागभाव पोषनेका प्रयोजन है। जाते कल्पित रचना तो कषायी जीव करें, सो अनेक युक्ति बनाय कषायभाव हीकों पोएँ । जैसैं अद्वैत ब्रह्मवादी सर्वकों ब्रह्म माननेकरि, अर सांख्यमती सर्व कार्य प्रकृति का मांनि आपकौं शुद्ध अकर्ता माननेकरि, अर शिवमती तत्त्व जाननेही सिद्धि होना माननेकरि, मीमांसक कषायजनित आचारणकों धर्म माननेकरि, बौद्ध क्षणिक माननेकरि, चार्वाक परलोकादि न माननेकरि विषयभोगादिरूप कषायकार्यनिविषै स्वच्छन्द होना ही पोषे हैं। यद्यपि कोई ठिकाने कोई कषाय घटावनेका भी
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