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मो.मा.
___ यहां अरहंत तुम हो' ऐसे भगवंतकी स्तुति करी, तातें अरहंतके भगवंतपनौ प्रगट भयो। प्रकाश । बहुरि हनुमन्नाटकविषै ऐसे कया है,
१ “यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनः बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कत्तेति नैयायिकाः। अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः
सोऽयं वो विदधातु वांछितफलं त्रैलोक्यनाथः प्रभुः॥१॥" ____यहां छहों मतिविष ईश्वर एक कह्या, तहां अरहंतदेवकै भी ईश्वरपना प्रगट किया। यहां कोऊ कहै, जैसें यहां सर्वमति विषे एक ईश्वर कह्या तैसें तुम भी मानौ ताकौं कहिए है-तुमनें। यह कह्या है, हम तौ न कह्या । तातै तुम्हारे मतविषै अरहंतकों ईश्वरपना सिद्ध भया। हमारे | | मतिविषै भी ऐसे ही कहैं, तो हम भी शिवादिककौं ईश्वर मानें। जैसे कोई ब्यापारी सांचा रत्न | दिखावे, कोई झूठा रत्न दिखावै । तहां झूठा रत्न वाला तौ सर्व रत्नोंका समान मोल लेनेकै अर्थि समान कहै । सांचा रत्न वाला कैसे समान माने। तैसें जैनी सांचा देवादिकौं निरूपैं, अन्यमती झूठा निरूपें, तहां अन्यमती अपनी महिमांक अर्थि सर्वको समान कहैं-जैनी कैसे
१ यह हनुमन्नाटके मंगलाचरणका श्लोक है इसका अभिप्राय यह है कि, जिसको शैव लोग शिव कहकर, वेदान्ती ब्रह्म कहकर, बौद्ध बुद्धदेव कहकर, नैयायिक कर्ता कहकर, जैनी अर्हन् कहकर और मीमांसक कर्म कहकर उपासना करते हैं, वह त्रैलोक्यनाथ प्रभु तुम्हारे मनोरथोंको सफल करे।