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मो.मा. बहुरि कालदोषतें कषायी जीवनिकरि जिनमतविषै भी कल्पित रचना करी है, सोही दिखाईए है,प्रकाश
श्वेतांवरमतवारे काहुने सूत्र बनाए, तिनकों गणधरके किए कहै हैं। सो उनको पूछिए । है-गणधरनें आचारांगादिक बनाए हैं सो तुम्हारे अवार पाईए है सो इतने प्रमाण लिए ही | किए थे। जो इतने प्रमाण लिए ही किए थे, तो तुम्हारे शास्त्रनिविषै आचारांगादिकनिके | पदनिका प्रमाण अठारह हजारादि कह्या है, सो तिनकी विधि मिलाय द्यो। पदका प्रमाण | कहा। जो विभक्तिका अंतकौं पद कहोगे, तो कहे प्रमाणते बहुत पद होय जायगे अर जो | प्रमाण पद कहोगे, तो तिस एक पदकै साधिक इक्यावन कोडि श्लोक हैं । सो यह तो बहुत | छोटे शास्त्र हैं, सो बने नाहीं । बहुरि आचारांगादिकतै दशवकालिकादिकका प्रमाण घाटि | कह्या है। तुम्हारे बधता है सो कैसे बनै । बहुरि कहोगे, प्राचारांगादिक बड़े थे, कालदोष | जानि तिनही मेंसों केतेक सूत्र काढ़ि यह शास्त्र बनाए हैं । तो प्रथम तो टूटकग्रंथ प्रमाण
नाहीं । बहुरि यह प्रबंध है, जो बड़ा ग्रंथ बनावै तौ वा विष सर्व वर्णन विस्तार | लिए करै अर छोटा ग्रंथ वनावै तौ तहां संक्षेपवर्णन करै, परन्तु संबंध टूटै नाहीं। अर कोई || बड़ा ग्रंथमें थोरासा कथन काढ़ि लीजिए, तो तहां संबंध मिले नाही-कथनका अनुक्रम | || टूटि जाय । सो तुम्हारे सूत्रनिविषे तो कथादिकका भी संबंध मिलता भासे है-टूटकपना न भासै || है । बहुरि अन्य कवीनितें गणधरकी तो बुद्धि अधिक होगी, ताके किए ग्रंथनिमें थोरे शब्दमें