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मो.मा. प्रकाश
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जो पूर्व थोरा सुखी होय अर कुतूहल किए घना सुखी होय सो कुतूहल करना विचारे । सो ब्रह्मकै एक अवस्थातै बहुत अवस्थारूप भए घना सुख होना कैसे संभवै ? बहुरि जो पूर्व ही संपूर्ण सुखी होय, तौ अवस्था काहेकौं पलटै। प्रयोजन विना तो कोई किछु कर्त्तव्य करें। नाहीं । बहुरि पूर्व भी सुखी होयगा इच्छा अनुसार कार्य भए भी सुखी होगा परन्तु इच्छा भई तिसकाल तौ दुखी होय । तब वह कहै है ब्रह्मकें जिसकाल इच्छा हो है तिसकाल ही कार्य हो है तातै दुखी न हो है । तहां कहिए है, स्थूलकालकी अपेक्षा तो ऐसे मानौ परन्तु सूक्ष्म-! कालकी अपेक्षा तो इच्छाका ओर कार्यका होना युगपत् संभव नाहीं । इच्छा तौ तब ही होय, |
जब कार्य न होय । कार्य होय, तब इच्छा न होय । ताते सूक्ष्मकालमात्र इच्छा रही तब तो | | दुखी भया होगा। जाते इच्छा है सो ही दुःख है अर कोई दुःखका स्वरूप है नाहीं । ताते | ब्रह्मकै इच्छाकी कल्पना करिए है सो मिथ्या है।
बहुरि वह कहै है इच्छा होते ब्रह्मकी माया प्रगट भई सो ब्रह्मकै माया भई तब ब्रह्म भी मायावी भया शुद्धखरूप कैसे रह्या । बहुरि ब्रह्मकै अरमायाकै दंडी दंडवत् संयोगसंबंध है। कि अग्नि उष्णवत् समवायसंबंध है। जो संयोगसंबंध है तो ब्रह्म भिन्न है माया भिन्न है अद्वैत ब्रह्म कैसे रह्या ? बहुरि जैसें दंडी दंडकों उपकारी जानि ग्रहै है तैसें ब्रह्म मायाको उपकारी जान है तो ग्रहै है, नाहीं तो काहेकौं ग्रहै ? बहुरि जिस मायाकौं ब्रह्म ग्रहै ताका निषेध