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मो.मा.
प्रकारा
जीवनिकों दुख ही देखिए है । क्षधा तृषादिक लग रहे हैं । शीत उष्णादिक करि दुख हो है।। जीव परस्पर दुख उपजावै हैं। शस्त्रादि दुखके कारण बनि रहे हैं। बहुरि विनसनेके कारण अनेक बनि रहे हैं। जीवनिकै रोगादिक वा अग्नि विष शस्त्रादिक पर्यायके नाशके कारण || देखिए है । अर जीवनिकै भी परस्पर विनसनेका कारण देखिए है। सो ऐसे दोय प्रकारही । रक्षा की नाहीं तो विष्णु रक्षक होय कहा किया। वै कहै हैं-विष्णु रक्षक ही है। देखो क्षुधा। तृषादिकके अर्थि अन्न जलादिक किए हैं । कीडीकों कण कुंजरों मण पहुचावै है। संकटमें | सहाय करें है । मरणके कारण बने (१)टीटोड़ीकी नाईं उवारे है । इत्यादि प्रकारकरि विष्णु रक्षा | करे है । याकौं कहिए है, ऐसे है तो जहां जीवनिकों तुधातृषादिक बहुत पीड़ें अर अन्न ||
जलादिक मिले नाहीं संकट पड़े सहाय न होय किंचित् कारण पाय मरण होय जाय, तहां | विष्णुकी शक्ति ही न भई कि वाकों ज्ञान न भया । लोकविर्षे बहुत ऐसे ही दुखी हो हैं मरण | | पावे हे विष्णु रक्षा काहेकौं न करी। तब वै कहै हैं, यह जीवनिके अपने कर्त्तव्यका फल है । | तब वाकों कहिए है कि, जैसे शक्ति हीन लोभी झूठा वैद्य काहूके किछु भला होइ ताकौं तौ | कहै मेरा किया भया है। अर जहां बुरा होय मरण होय, तब कहै याका ऐसा ही होनहार था। तैसें ही तू कहै है कि, भला भया तहां तो विष्णुका किया भया अर बुरा भया सो
(१) नोट-टिटहरी एक प्रकारका पक्षी एक समुद्र किमारे रहती थी। उसके अंडे समुद्र बहा ले जाता था, सो उसने दुखी होकर गरुड़ पक्षी की मारफत विष्णुसे अर्ज की, तो उन्होंने समुद्रसे अंडे दिलवा दिये। ऐसी पुराणों में कथा है।
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