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मो.मा.
प्रकाश
" बहुरि क है है— महेश संहार करे है, सो भी मिथ्या है। प्रथम तौ महेश संहार करै है सो सदा ही करे है कि महाप्रलय हो है तब ही करें है । जो सदा करे है तो जैसे | विष्णुकी रक्षा करनेकरि स्तुति कीनी तैसें याकी संहार करनेकरि निंदा करो । जातैं रक्षा अर संहार प्रतिपक्षी हैं । बहुरि यह संहार कैसें करें है । जैसें पुरुष हस्तादिककरि काहूकों मारै वा काहूकरि मरावे तैसें महेश अपने अंगनिकरि संहार करै है वा काहूकों आज्ञाकरि मरावे है । क्षण क्षणमै संहार तौ घने जीवनिका सर्व लोकमैं हो है यह कैसें अंगनिकरि वा कौन कौनकौं आज्ञा देय युगपत् कैसें संहार करे है । जो कहै कि महेश तौ इच्छा ही करै अर याहीकी इच्छा स्वयमेव उनका संहार हो है । तौ याकै सदा काल मारनेरूप दुष्टपरिणाम ही रह्या करते होंगे। अर अनेकजीवनिकों युगपत् मारनेकी इच्छा कैसें होती होगी । बहुरि जो महाप्रलय होते संहार करें है तो परमब्रह्मकी इच्छा भए करे है कि बाकी बिना इच्छा ही करै है । जो इच्छा भए करें है तो परमब्रह्मकै ऐसा क्रोध कैसें भया जो सर्वका प्रलय करनेकी इच्छा भई । तैं कोई कारण विना नाश करनेकी इच्छा होय नाहीं । अर नाश करनेकी इच्छा ताहीका नाम क्रोध है, सो कारन बताय । बहुरि विनाकारण इच्छा हो है, तौ बावलेकीसी इच्छा भई । बहुरि तू कहैगा परमब्रह्म यह ख्याल (खेल) बनाया था बहुरि दूरि किया कारन किछू भी नाहीं, तो ख्याल बनानेवालाकों भी ख्याल इष्ट लागे है तब बनाये है । अनिष्ट लागे है
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