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मो.मा.
प्रकाश
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ठाकुरका ऐसा वर्णन करना भी स्तुति है तो ठाकुरने ऐसे कार्य किस अर्थि किये ? ऐसे निंद्य
कार्य करने में कहा सिद्धि भई ? कहोगे, प्रवृत्ति चलावनेके अर्थि किए, तो परस्त्री आदि सेवन || निन्यकार्यनिकी प्रवृत्ति चलावनेमें आपके वा अन्यकै कहा नफा भया ? तातें ठाकुरके ऐसे
कार्य करना संभवें नाहीं । बहुरि जो ठाकुर कार्य नाहीं किए, तुम ही कहो हो, तो जामें दोष | न था ताको दोष लगाया ताते ऐसा वर्णन करना तो निन्दा है, स्तुति नाहीं। बहुरि स्तुति | करते जिन गुणनिका वर्णन करिए तिस रूप ही परिणाम होय वा तिनहीविषै अनुराग आवै ।। सो काम क्रोधादि कार्यनिका वर्णन करतें आप भी काम क्रोधादिरूप होय अथवा कामक्रोधादिविषे अनुरागी होय, तो ऐसे भाव तो भले नाहीं । जो कहोगे, भक्त ऐसा भाव न करे हैं तो परिणाम भए बिना वर्णन कैसे किया ? अनुराग भए बिना भक्ति कैसें करी। जो ए भाव ही | भले होय तो ब्रह्मचर्यकों वा चमादिककों भले काहेकौं कहिए ? इनके तो परस्पर प्रतिपक्षीपना है। बहुरि सगुणभक्ति करने के अर्थि राम कृष्णादिककी मूर्ति भी श्रृंगारादि किए वक्रत्वादि। सहित स्त्री आदि संगलिए बनावें हैं जाकों देखते ही कामक्रोधादि भाव प्रगट होय।
भावें । बहुरि महादेव के लिंगहीका आकार बनावे हैं। देखो विटंबना, जाका नाम लिए ही | लाज आवे, जगत् जिसकौं ढक्या राखे, ताका आकार का पूजन करावे हैं। अन्य अंग कहा वाके न थे ? परंतु घनी विटंबना ऐसे ही किए प्रगट होय। बहुरि सगुणभक्तिके अर्थि नाना-
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