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मो.मा. प्रकाश
మందరం నిరంతరం నిరంతరంగం
स्पर्शादिक पांच तन्मात्रा कहीं, सो रूवादि किछू जुदे वस्तु नाहीं ए तो परमाणूनिसौं तन्मय गुण हैं ए जुदे कैसे निपजै । बहुरि अहंकार तौ अमूर्तक जीवका परिणाम है । तातै ए मूर्तीकगुण कैसे निपजे मानिए बहुरि इलि पांचनिने अग्नि आदि निपजे कहें, सो प्रत्यक्ष झूठ है । रूपादिक अग्नादिककै तौ सहभूत गुणगुणी संबंध है । कहने मात्र भिन्न हैं वस्तुविषै भेद नाहीं। किसी प्रकार कोऊ भिन्न होता भासै नाही, कहने मात्रकरि भेद उपाजाईए है। तातै रूपादिकरि अग्नादि कैसे उपजे मानिए। कहनेविषै भी गुणीविषै गुण हैं। गुणते गुणी निपज्या ।
कैसैं मानिए । बहुरि इनित भिन्न एक पुरुष कहै हैं, सो वाका खरूप अवक्तव्य कहि प्रत्यु|त्तर नाहीं करते । जो पूछिए कि कैसा है, कहा है, कैसे कर्ता हर्ता है, सो बतावते नाहीं । जो | बता३ तौ ताहीमें विचार किए अन्यथापनौ भासें । ऐसें सांख्यमतकरि कल्पित तत्त्व मिथ्या जानने । बहुरि पुरुषकों प्रकृतितै भिन्न जानने का नाम मोक्षमार्ग कहै हैं। सो प्रथम तौ प्रकृतिपुरुष कोई है ही नाहीं । बहुरि केवल जानेहीत तौ सिद्धि होतो नाहीं। जानिकरि रागादिक मिटाए सिद्धि होय, सो ऐसें जाने किछू रागादिक घटै नाहीं । प्रकृतिका कर्त्तव्य माने || आप अकर्ता रहै, तब काहेको आप रागादिक घटावै । तातें यह मोक्षमार्ग नाहीं है । बहारे । प्रकृति पुरुषका जुदा होना मोक्ष कहै हैं । सो पञ्चीस तत्वनिविषै चौईस तत्व तौ प्रकृतिसंबंधी | कह्या, एक पुरुष भिन्न कह्या । सो ए तौ जुदे ही हैं अर जीव कोई पदार्थ पच्चीस तत्वनिविषै