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मो.मा. प्रकाश
शब्द, उपमा | बहुरि अमा अथ बुद्धि इत्यादि प्रमेय कहे हैं । बहुरि 'यह कहा है ' ताका नाम शंसय है । जाकै अर्थ प्रवृत्ति होय, सौ प्रयोजन है । जाकौं वादी प्रतिवादी मानें सो दृष्टांत है । दृष्टांतकरि जाकों ठहराईए सो सिद्धान्त है । बहुरि अनुमानके प्रतिज्ञा आदि पंचांग ते अवयव हैं । संशय दूरि भए किसी विचार ठीक होय, सो तर्क है । पीछे प्रतितिरूप जानना सों निर्णय है । आचार्य शिष्यकै पक्ष प्रतिपक्षकरि अभ्यास सो वाद है । जानने की इच्छारूप कथाविषै जो छल जाति आदि दूषण सो जल्प है । प्रतिपक्ष रहित वाद सो वितंडा है । सांचे हेतु नाहीं, ते प्रसिद्ध आदि भेद लिये हेत्वाभास हैं । छललिए वचन सो छल है । सांचे दूषण नाहीं ऐसे दूषणाभास सो जाति है । जाकरि परवादीका निग्रह होय सो निग्रहस्थान है । या प्रकार संशयादि तत्त्व कहे, सो ए कोई वस्तुस्वरूप तौ तत्त्व हैं नाहीं । ज्ञानके निर्णय करनेकौं वा वादकरि पांडित्य प्रगट करनेकों कारणभूत विचाररूप तत्र कहे, परमार्थ कार्य कैसें होय । काम क्रोधादि भावकों मेटि निराकुल होना सो कार्य है । सोतों यहां प्रयोजन किछू दिखाया ही नाहीं । पंडिताई की नाना युक्ति बनाई सो यह भी एक चातुर्य्य है, तातें ये तत्वभूत नाहीं । बहुरि कहोगे इनकों जाने बिना प्रयोजनभूत तत्वका निर्णय न करि सर्फे, तातैं ए तत्त्व कहे हैं । सो ऐसें परंपरा तौं व्याकरण वाले भी कहै हैं । व्याकरण पढ़ें अर्थ निर्णय होय, वा भोजनादिकके अधिकारी भी कहै हैं कि भोजन किए
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