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छटै ही छूट। सो द्रव्यमन जड़ ताका नाम बुद्धि कैसे होय । बहुरि मनवत् ही इन्द्रिय जानने। प्रकाश
बहुरि विषयका प्रभाव होय । सो स्पर्शादि विषयनिका जानना मिटै है, तो ज्ञान काहेका नाम ठहरैगा । अर तिनि विषयनिका ही अभाव होयगा, तो लोकका अभाव होयगा। बहुरि सुख का अभाव कह्या सो सुखहीकै अर्थ उपाय कीजिए है ताका जहां अभाव होय सो उपादेय | कैसे होय । बसुरि जो आकुलतामय इन्द्रियजनित सुखका तहां अभाव भया कहें, तो यह । सत्य है। निराकुलता लक्षण अतींद्रिय सुख तौ तहां संपूर्ण संभवै है तातै सुखका अभाव
नाहीं। बहुरि शरीर दुःख द्वेषादिकका तहां अभाव कहें सो सत्य ही है । बहुरि शिवमतविषै कर्ता निर्गुण ईश्वर शिव है ताकौं देव माने हैं। सो याके स्वरूपका अन्यथापना पूर्वोक्त प्रकार जानना बहुरि यहां भस्मी, कोपिन, जटा, जनेऊ इत्यादि चिन्ह सहित भेष हो हैं सो आचारादि भेदते च्यार प्रकार हैं-शैव, पाशुपत, महाव्रती, कालमुख। सो ए रागादि सहित हैं ताते सुलिंग नाहीं । ऐसें शिवमतका निरूपण किया। अब मीमांसक मतका स्वरूप कहिए है
मीमांसक दोय प्रकार हैं-ब्रह्मवादी कर्मवादी। तहां ब्रह्मवादी तौ सर्व यह ब्रह्म है दूसरा कोऊ नाहीं ऐसा वेदान्तविर्षे अद्वैत ब्रह्मको निरूपै है । बहुरि आत्माविषै लय होना सो | मुक्ति कहै हैं। सो इनिका मिथ्यापना पूर्वे दिखाया है, सो विचारना। अर कर्मवादी क्रिया
आवार यज्ञादिक कार्यनिका कर्तव्यपना प्ररूपै हैं, सो इन क्रियानिवि रागादिकका सद्भाव
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