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मो.मा. पाया तहां टहल किया करे तो जैसे राजाकी चाकरी करनी तेस यह भी चाकरी भई । तहां | प्रकाश
पराधीन भए सुख कैसे होय । यह भी बने नाहीं । बहुरि एक मोक्ष ऐसा कहै हैं—ईश्वर समान
आप हो है सो भी मिथ्या है । जो उनकै समान और भी जुदा हो है तो बहुत ईश्वर भए | लोकका कर्ताहत्ता कौन ठहरै । भिन्न २ इच्छा भए परस्पर विरोध होय । एक ही है तौ समानता
न भई । न्यून है ताकै नीचापनेकरि उच्चता होनेकी आकुलता रही तब सुखी कैसे होय । जैसे || छोटा रापाड़ा राजा संसारविषे हो हैं तैसें छोटा बड़ा ईश्वर भी मुक्तिविषै भया सो बने नाहीं।
बहुरि एक मोक्ष ऐसा कहै हैं जो वैकुंठविषै दीपककीसी ज्योति है। तहां ज्योतिविषै ज्योति जाय मिले है । सो यह भी मिथ्या है दीपककी ज्योति तौ मूर्तीक अचेतन है, ऐसी ज्योति तहां कैसे संभवै । बहुरि ज्योतिमें ज्योति मिले यह ज्योति रहै है कि विनसि जाय है। जो रहै. है तो ज्योति बधती जायगी। तब ज्योतिविषै हीनाधिकपना होगा । अर विनसि जाय है तो आपकी सत्ता नाश होय ऐसा कार्य उपादेय कैसैं मानिए । तातें ऐसे भी बने नाहीं । बहुरि । एक मोक्ष ऐसा कहै हैं जो आत्मा ब्रह्म ही है मायाका आवरण मिटे मुक्ति ही है । सो ।
यह भी मिथ्या है । यह मायाका आवरणसहित था तब ब्रह्मसों एक था कि जुदा था । जो # एक था तो ब्रह्म ही मायारूप भया अर जुदा था तो माया दूरि भए ब्रह्मविषै मिले है तब है याका अस्तित्व रहै है, जो रहै है तो सर्वज्ञकों तौ याका अस्तित्व जुदा भासै तब संयोग होने
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