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সাহা
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तपश्चरण दिखावै । कोई अवतार भोगादिक दिखावै । जगत किसकौं भला जानि लागे। यह ।। तो बहुरूपियाकासा खांग किया । .. ... बहुरि वह कहै है-एक 'अरहंत नामका राजा भया, सो दृषभावतारका मत अंगीकार|| करि जैनमत प्रगट किया, सोजैनविर्षे कोई एक अरहंत भया नाहीं । जो सर्पज्ञपद पाय पूजने | योग्य होय ताहीका नाम अर्हत् है । बहुरि राम कृष्ण इनि दोय अबतारनिको मुख्य कहै हैं सो रामावतार कहा किया। सीताके अर्थि विलापकरि रावमसौं लरि वाकू मारि राज किया। अर कृष्णावतार पहिले गुवालिया होय परस्त्री गोपकानिके अर्थि नाना विपरीत चेष्टाकरि पीछे जरासिंधु आदिकों मारि राज किया।सो ऐसे कार्य करनेमें कहा सिद्धि भई । बहुरि रामकृष्णादिकका एक स्वरूप कहें । सो बीचमैं इतनेकाल कहां रहै । जो ब्रह्मविषे रहे तो जुदे रहे कि एक रहे, जुदे रहे सौ जानिए है ए ब्रह्मते जुदे रहे । एक रहे तो राम ही कृष्ण भया, सीताही. | रुक्मिणी भई इत्यादि कैसे कहिए है । बहुरि रामावतारविषे तौसीताको मुख्य कहै अर कृष्णा| वतारविषै सीताकौं रुक्मिणी भई कहै ताळू तौ प्रधान न कहें राधिका कुमारी ताळू मुख्य कहें ।
बहुरि पूछे तब कहै कि राधिका भक्त थी, सो निजस्त्रीकी छोरि दासीका मुख्य करना कैसे बने।। | बहुरि कृष्णकै तौ राधिकासहित परस्त्री सेवनके सर्व विधान भए । सो यह भक्ति कैसी करी।। | ऐसे कार्य तौ महानिंद्य हैं । बहुरि रुक्मिणीकू छोरि राधाकौं मुख्य करी सो परस्त्रीसेवनकों भला १६६