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मो.मा.
बाह्य द्रव्यनिस्यों वृथा खेद करे है। अन्य द्रव्य याकै विघन किया चाहै अर याकै न होइ । प्रकारा
| बहुरि अन्य द्रव्य विघन किया न चाहै अर याकै होइ । तातें जानिए है अन्यद्रव्यका किछु |
वश नाही, तिनिस्यों काहेको लरिये । तातें यह उपाय झूठा है। तो सांचा उपाय कहा है ? || मिथ्यादर्शनादिकतें इच्छाकरि उत्साह उपजे था सो सम्यग्दर्शनादिककरि दूरि होय । अर सम्यग्दर्शनादिकहीकरि अंतरायका अनुभाग घटै तब इच्छा तो मिटि जाय शक्ति बधि जाय तब
वह दुःख दूरि होइ निराकुलसुख उपजै । तातें सम्यग्दर्शनादिक ही सांचा उपाय है। बहुरि - वेदनीयके उदयतें दुखसुखके कारनका संयोग हो है। तहां केई तो शरीरविषै ही अवस्था हो | है केई शरीरकी अवस्थाकों निमित्तभूत बाह्य संयोग हो है। केई बाह्य ही वस्तूनिका संयोग
हो है । तहां असाताके उदयकरि शरीरविषै तो क्षुधा तृषा उच्छ्वास पीड़ा रोग इत्यादि हो है। बहुरि शरीरकी अनिष्ट अवस्थाको निमित्तभूत बाह्य अतिशीत उष्ण पवन बन्धनादिकका । संयोग हो है। बहुरि बाह्य शत्रु कुपुत्रादिक वा कुवर्णादिक सहित स्कन्धनिका संयोग हो है ।।
सो मोहकरि इनविषै अनिष्टबुद्धि हो है। जब इनिका उदय होय तब मोहका उदय ऐसा ही | आवे जाकरि परिणामनिमें महाव्याकुल होइ इनिको दूर किया चाहै। यावत् ए दूरि न होय तावत् दुखी हो है सो इनिकों होतें तौ सर्व ही दुःख माने हैं । बहुरि साताके उदयकरि शरीरविष आरोग्यवानपनौ बलवानपनौ इत्यादि हो है। बहुरि शरीरकी इष्ट अवस्थाको निमित्तभूत