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मो.मा. प्रकाश
| धारक बड़े जीव हैं, तिनिकी शक्ति प्रगट हो है। ताते ते जीव विषयनिका उपाय करें हैं दुख दूरि होनैका उपाय करै हैं क्रोधादिककरि काटना मारना लरना छलकरना अन्नादिका संग्रह। करना भागना इत्यादि कार्य करे हैं। दुखकरि तड़फड़ाट करना पुकारना इत्यादि क्रिया करै | हैं । तातै तिनिका दुख किछु प्रगट भी हो है। सो लट कीड़ी आदि जीवनिकै शीत उष्ण छेदन भेदनादिकतै वा भूख तृषा आदितै परम दुख देखिए है। जो प्रत्यक्ष दीसै ताका | | विचार करि लैना, इहां विशेष कहा लिखें। ऐसें वेइन्द्रियादिक जीव भी महादुखी ही जानने ।
बहुरि संज्ञीपंचेंद्रियनिविषै नारकी जीव हैं ते तो सर्व प्रकार घने दुखी हैं। ज्ञानादिकी | शक्ति किछु है परन्तु विषयनिकी इच्छा बहुत अर इष्टविषयनिकी सामग्री किंचित् भी न मिले | तातै तिस शक्तिके होनैकरि भी घने दुखी हैं। बहुरि क्रोधादि कषायका अति तीव्रपना पाइए |
है। जातें उनकै कृष्णादि अशुभलेश्या ही हैं। तहां क्रोधनानकरि परस्पर दुख देनेका निरन्तर | कार्य पाइए है। जो परस्पर मित्रता करें तो यह दुख मिटि जाय। अर अन्यकों दुख दिए | किछू उनका कार्य भी होता नाहीं परन्तु क्रोधमानका अति तीबपना पाइए है ताकरि परस्पर दुख देनेहीकी बुद्धि रहै । विक्रियाकरि अन्यकों दुखदायक शरीरके अंग बना३ वा शस्त्रादि बनावें तिनिकरि अन्यकों आप पीड़ें अर आपको कोई अन्य पीडै । कदाचित् कषाय उपशांत होय नाहीं । बहुरि माया लोभकी भी अति तीव्रता है परंतु कोई इष्टसामग्री तहां दीखे नाहीं ।