________________
मो.मा. प्रकाश
वस्तुस्वरूप स्वरूप ताक न पहिचानै अन्यथास्वरूप मानै सो स्वरूपविपर्यय है । बहुरि जाक इन भिन्न हैं ए इनतें अभिन्न हैं ऐसा न पहिचानै अन्यथा भिन्न भिन्नपनमा सो भेदाभेदविपर्यय है । ऐसें मिथ्यादृष्टी कै जाननेविषै विपरीतता पाइए है । जैसें मतवाला माताकों Hit भार्या माता माने तैसें मिथ्यादृष्टी कै अन्यथा जानना है । बहुरि जैसें काहूकालविषै मतवाला माताको माता वा भार्याकौं भार्या भी जानै तौ भी वाकै निश्चयरूप निर्द्धारकरि श्रद्धान लिए जानना न हो है । तातै ताकै यथार्थज्ञान न कहिए। तैसें मिथ्यादृष्टी काहूकालविषै किसी पदार्थों सत्य भी जानै तौ भी वाकै निश्चयरूप निद्धारकरि श्रद्धानलिए जानना न हो है । अथवा सत्य भी जानै परन्तु तिनकरि अपना प्रयोजन जो यथार्थ ही साधे है ता वाकै सम्यग्ज्ञान न कहिए। ऐसा मिथ्यादृष्टी कै ज्ञानकों मिथ्याज्ञान कहिए है । इहां प्रश्न, जो | इस मिथ्यातका कारन कौन है ? ताका समाधान,
मोहके उदयतै जो मिथ्यात्वभाव होय सम्यक्त्व न होय सो इस मिथ्याज्ञानका कारण है । जैसैं विषके संयोगतै भोजन भी विषरूप कहिए तैसें मिथ्यात्वके संबंध ज्ञान है सो मिथ्याज्ञान नाम पावै । इहां कोऊ कहै ज्ञानावरणका निमित्त क्यौं न कहौ ? ताका
समाधान, -
ज्ञानावरण के उदयतै तौ ज्ञानका अभावरूप अज्ञानभाव हो है । बहुरि क्षयोपशम तैं
१२=