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मो.मा. प्रकाश
ज्ञान मिथ्याज्ञान कैसें न कहिए ? ताका समाधान,
जहां जाननेहीका-सांच झंठ निर्धार करनेही का प्रयोजन होय तहां तो कोई पदार्थ ।' ताका सांचा झूठा जाननेकी अपेक्षा ही मिथ्याज्ञान सम्यग्ज्ञान नाम पावे है। जैसे प्रत्यक्ष परोक्ष-1||
प्रमाणका वर्णनविषै कोई पदार्थ होय ताका सांचा जाननेरूप सम्यग्ज्ञानका ग्रहण किया है। संशयादिरूप जाननेकौं अप्रमाणरूप मिथ्याज्ञान कह्या है। बहुरि इहां संसार मोक्षके कारणभूत सांचा झूठा जाननेका निर्धार करना है सो जेवरी सादिकका यथार्थ वा अन्यथा ज्ञान संसार मोक्षका कारन नाहीं । तातै तिनकी अपेक्षा इहां मिथ्याज्ञान सम्यग्ज्ञान न कह्या । इहां प्रयोजनभूत जीवादिक तत्वनिहीका जाननेकी अपेक्षा मिथ्याज्ञान सम्यग्ज्ञान कह्या है । इस ही अभिप्रायकरि सिद्धांतविषै मिथ्यादृष्टीका तौ सर्व जानना मिथ्याज्ञान ही कह्या अर सम्यग्दृष्टीका सर्व जानना सम्यग्ज्ञान कह्या । इहां प्रश्न,-जो मिथ्यादृष्टीकै जीवादि तत्वनिका अयथार्थ । जानना है ताकौं मिथ्याज्ञान कही। जेवरी सादिकके यथार्थ जाननेकौं तौ सम्यग्ज्ञान कहौ । ताका समाधान
मिथ्यादृष्टि जाने है तहां वाकै सत्ता असत्ताका विशेष नाहीं है। तातै कारणविपर्यय वा स्वरूपविपर्यय वा भेदाभेदविपर्ययकौं उपजावै है। तहां जाकौं जाने है ताका मूल कारनकों | न पहिचान । अन्यथा कारण मानै सो तो कारणविपर्यय है। बहुरि जाकौं जानै ताका मूल