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मो.मा. प्रकाश
పంచాంగం ని ని నుంచి వందల 2020010
मनुष्य एक है। सो इस प्रकार जो सर्व पदार्थ तौ अंग हैं अर जाकै ए हैं सो अंगी ब्रह्म है। | यह सर्व लोक विराटस्वरूप ब्रह्मका अंग है, ऐसैं मानिए तौ मनुष्यकै हस्तपादादिक अंगनिकै परस्पर अन्तराल भए तो एकपना रहता नाहीं । जुड़े रहे ही एक शरीर नाम पावै । सो लोक-। विषै तो पदार्थनिकै अन्तराल परस्पर भासै है । याका एकत्वपना कैसैं मानिए ? अन्तराल भए । भी एकत्व मानिए तौ भिन्नपना कहां मानिए। इहां कोऊ कहै कि समस्त पदार्थनिके मध्यविष सूक्ष्मरूप ब्रह्मके अंग हैं तिनिकरि सर्व पदार्थ जुड़ि रहे हैं ताकौं कहिए है,
जो अंग जिस अंगते जुरथा है तिसहीत जुस्या रहै है कि टूटि टूटि अन्य अन्य अंगनिसौं जुरया करै है। जो प्रथम पक्ष ग्रहण करैगा तौ सूर्यादिक गमन करै हैं, तिनिके | साथि जिन सूक्ष्म अंगनित वे जुरे रहें ते भी गमन करें। बहुरि तिनिकौं गमन करते सूक्ष्म अंग अन्य स्थूल अंगनि जुरे रहैं ते भी गमन करे हैं सो ऐसे सर्व लोक अस्थिर हो जाय । जैसे शरीरका एक अंग खींचे सर्व अंग खींचे जाय, तैसें एक पदार्थकों गमनादि करते सर्व पदार्थनिका गमनादि होय सो भासै नाहीं। बहुरि जो द्वितीय पक्ष ग्रहैगा, तो अंग टूटनेते भिन्नपना होय जाय तब एकपना कैसे रह्या ? तातै सर्वलोकका एकत्वकौं ब्रह्म मानना भ्रम
ही है । बहुरि एक प्रकार यह है जो पहिले एक था पीछे अनेक भया बहुरि एक होय जाय । ताते एक है । जैसें जल एक था सो वासणनिमें जुदा भया । बहुरि मिले तब एक होय जाय
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