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मो.मा. प्रकाश
भागनेकी वा लरनेकी वा पुकारनैकी शक्ति नाहीं तातें अज्ञानीलोक उनके दुखकौं जानते । नाहीं । बहुरि कदाचित् किंचित् साताका उदय होइ सो वह बलवान् होता नाहीं । बहुरि आयुकर्म इनि एकेन्द्रिय जीवनिविष जे अपर्याप्त हैं तिनकै तौ पर्यायकी स्थिति उश्वासके अठारहवें भाग मात्र ही है । अर पर्यातनिकी अन्तर्मुहुर्त आदि कितेकवर्ष पर्यन्त है । सो आयु थोरा
तातै जन्ममरण हुवा ही करै ताकरि दुखी हैं । बहुरि नामकर्मविष तिर्यंचगति आदि पापप्रकृति*निका ही उदय विशेषपनै पाइए है। कोई ही पुण्यप्रकृति का उदय होइ ताका बलवानपना
नाहीं तातै तिनिकरि भी मोहके वशतै दुखी हो है। बहुरि गोत्रकर्मविष नीच गोत्रहीका | उदय है ताकरि महंतता होय नाहीं । तातै भी दुखी ही है । ऐसें एकेन्द्रिय जीव महादुःखी है अर इस संसारविर्षे जैसे पाषाण आधारविर्षे तो बहुत काल रहै है निराधार आकाशविषे तौ कदाचित् किंचिन्मात्रकाल रहै, तैसें जीव एकेन्द्रिय पर्यायविषै बहुतकाल रहै है अन्य पर्यायविष | तो कदाचित् किंचिन्मात्र काल रहे है । तातै यह जीव संसारविषै महादुखी है । बहुरि वेन्द्रिय नेन्द्रिय चौइंद्रिय असंगीपंचेंद्रिय पर्यायनिकों जीव धरै तहां भी एकेंद्रियवत् दुख जानना । विशेष इतना-इहां क्रमते एक एक इंद्रियजनित ज्ञानदर्शनकी वा किछु शक्तिकी अधिकता | भई है बहुरि बोलने चालनेकी शक्ति भई है । तहां भी जे अपर्यात हैं वा पर्यात भी हीनशक्तिके | धारक हैं छोटे जीव हैं तिनिकी शक्ति प्रगट होती नाहीं । बहुरि केई पर्याप्त बहुत शक्तिके