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मो.मा.
प्रकाश
Day-001000 ల సంత -
నివాసం ఉం ం ం
वर्नन किया है तैसें जानना । वह सर्व वर्नन गर्भज मनुष्यनिकै संभ है अथवा तिर्यंचनिका वर्णन किया है तैसें जानना । विशेष यह है इहां कोई शक्तिविशेष पाइए है वा राजादिकनिकै | विशेष साताका उदय है वा क्षत्रियादिकनिकै उच्चगोत्रका भी उदय हो है । बहुरि धन कुटुम्बादिकका निमित्त विशेष पाइए है इत्यादि विशेष जानना। अथवा गर्भ आदि अवस्थाके दुख प्रत्यक्ष भासे हैं । जैसे विष्टाविषे लट उपजै तैसें गर्भमें शुक्र शोणितका बिन्दुकों अपना शरीर-2 रूपकरि जीव उपजै। पीछे तहां क्रमतें ज्ञानादिककी वा शरीरकी वृद्धि होइ । गर्भका दुःख | बहुत है। संकोचरूप अधोमुख तुधातृषादिसहित तहां काल पूरण करै। बहुरि बाह्य निकसै || तब बाल्यअवस्थामें महादुख हो है। कोऊ कहै बाल्यअवस्था में दुख थोरा है, सो नाहीं है ।। | शक्ति थोरी है ताते व्यक्त न होय सके है। पीछे व्यापारादिक वा विषयइच्छा आदि दुखनिकी प्रगटता हो है । इष्ट अनिष्टजनित आकुलता रहबो ही करै। पीछे वृद्ध होइ तब शक्ति- | । हीन होइ जाइ । तब परमदुखी हो है । सो ए दुख प्रत्यक्ष होते देखिए है। हम बहुत कहा कहैं। प्रत्यक्ष जाकौं न भासै सो कह्या कैसैं सुनै। काहूकै कदाचित् किंचित् साताका उदय हो है सो आकुलतामय है । अर तीर्थंकरादि पद मोक्षमार्ग पाए बिना होंय नाहीं । ऐसे मनुष्य पर्यायविषै दुख ही है । एक मनुष्य पर्यायविर्षे कोई अपना भला होनैका उपाय करै तौ होय सके है। जैसे काणा सांठाको जड़ वा बांड तो चूसने योग्य हो नाहीं। अर बीचि
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