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प्रकाश
मो.मा. वादिक आस्रव है। सो इनिकों न पहिचाने इनिकौं दुखका मूलकारन न जानै तौ इनिका ।
| अभाव कैसे करें । अर इनिका अभाव न करै तब कर्मबन्ध होइ तातै दुख ही होइ । अथवा । । मिथ्यात्वादिक भाव हैं सो ए दुखमय हैं। सो इनकों जैसेके तैसे न जाने, तौ इनिका अभाव।
न करै । तब दुख ही रहै । तातें आस्रवकों जानना । बहुरि समस्त दुखका कारण कर्मबन्धन । । है सो याको न जानै तब याते मुक्त होनेका उपाय न करें। तब ताके निमित्ततै दुखी होइ ।।
तातै बन्धकों जानना । बहुरि आस्रवका अभाव करना सो संवर है । याका स्वरूप न जानै तौ ॥ याविषे न प्रवर्ते तब आस्तव ही रहै तातै वर्तमान वा आगामी दुख ही होइ । तातै संवरकों
जानना । बहुरि कथंचित् किंचित्कर्मबन्धका अभाव ताका नाम निर्जरा है सो याकौं न जाने | । तब याकी प्रवृत्तिका उद्यमी न होइ । तब सर्वथा बन्ध ही रहै तातें दुख ही होइ । तातै निर्ज
राकों जानना । बहुरि सर्वथा सर्व कर्मबन्धका अभाव होना ताका नाम मोक्ष है । सो याकों न है पहिचाने तो याका उपाय न करें तब संसारविषै कर्मबन्धत निपजे दुखनिहीकों सहै ताते
मोक्षकों जानना। ऐसें जीवादि सप्त तत्त्व जानने । बहुरि शास्त्रादिकरि कदाचित् तिनिकों || जानै अर ऐसें ही है ऐसी प्रतीति न आई तो जानें कहा होय तातै तिनिका श्रद्धान करना | कार्यकारी है । ऐसें जीवादि तत्त्वनिका सत्यश्रद्धान किए ही दुख होनेका अभावरूप प्रयोजनकी सिद्धि हो है । ताते जीवादिक पदार्थ हैं ते ही प्रयोजनभूत जानने । बहुरि इनिके विशेषभेद
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