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मो.मा.
प्रकाश
इच्छाकी मुख्यता है ताते आकुलित हैं । या प्रकार जो इच्छा है सो मिथ्यात्व अज्ञान असंयमते हो है। बहुरि इच्छा है सो आकुलतामय है अर आकुलता है सो दुख है। ऐसे सर्व || जीव संसारी नानाप्रकारके दुखनिकरि पीड़ित ही होइ रहे हैं। अब जिन जीवनिकों दुखनिते। छटना होय सो इच्छा दूरि करनेका उपाय करो । बहुरि इच्छा दूरि तब ही होइ जब मिथ्यात्वअज्ञान असंजमका अभाव होइ अर सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्रकी प्राप्ति होय । ताते इस ही कार्य का उद्यम करना योग्य है । ऐसा साधन करते जेती जेती इच्छा मिटै तेता ही दुख दूरि होता | जाय । बहुरि जब मोहके सर्वथा अभावते सर्वथा इच्छाका अभाव होइ तब सर्व दुख मिटै |सांचा सुख प्रगटै। बहुरि ज्ञानावरण दर्शनावरण अन्तरायका अभाव होइ तब इच्छाका कारण क्षयोपशम ज्ञान दर्शनका वा शक्तिहीनपनाका भी अभाव होइ, अनन्तज्ञानदर्शनवीर्यकी प्राप्ति होइ । बहुरि केतेक काल पीछे अघाति कर्मनिका भी अभाव होइ तब इच्छाके बाह्य कारन तिनिका भी अभाव होइ । सो मोह गए पीछे एकै काल किछू इच्छा उपजावनेकौं समर्थ थे नाहीं, मोह होने कारण थे ताते कारन कहे हैं सो इनिका भी अभाव भया। तब सिद्धपदको प्राप्त हो हैं। तहां दुखका वा दुखके कारननिका सर्वथा अभाव होने सदाकाल अनौ| पम्य अखंडित सर्वोत्कृष्ट आनन्दसहित अनन्तकाल विराजमान रहै हैं । सोई दिखाइए है-ज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षयोपशम होते वा उदय होते मोहकरि एक एक विषय देखने जाननेकी इच्छा