________________
श्रावकाचार
॥२१॥
अन्वयार्थ (सप्ततत्त्वानां द्रव्य काय पदार्थकं दर्शनं) सात तत्व, छः द्रव्य, पांच अस्तिकाय और नौ पदार्थीका अडान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन है (जीवद्रव्यं च शुद्धं च सार्थ शुद्ध दर्शनं) तथा शुद्ध जीव द्रव्यका श्रद्धान करना यथार्थ निश्चय सम्यग्दर्शन है।
विशेषार्थ-व्यवहार सम्यग्दर्शन निश्चय सम्यग्दर्शनके लिये निमित्त कारण है। व्यवहार सम्यतके विषय छः द्रव्य, पांच अस्तिकाय, सात तत्व और नौ पदार्थ हैं।
छः द्रव्य-२-जीव चेतना स्वरूप है। इसके तीन भेद बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्माका स्वरूप कहा जाचुका है। २-पुद्गल-स्पर्श, रस, गंध, वर्ण मय जड परमाणु व स्कंघको कहते हैं। हमारे आत्माके साथ लगे तैजस, कार्माण व औदारिक तीनों शरीर पुद्गलके बने हैं। ये दो द्रव्य अनंतानंत हैं। येही क्रियावान हैं, हलन चलन करते हैं व इनहीमें विभाव पर्यायें होती हैं। यद्यपि शुद्ध आत्मा निश्चल है व स्वभावरूप है। -धर्म द्रव्य-लोक व्यापी असंख्यात प्रदेशी अमूर्तीक द्रव्य है जो जीव पुद्गलके गमनमें उदासीन निमित्त कारण है।४-अधर्म द्रव्य-लोकव्यापी अमूर्तीक द्रव्य है जो जीव पुद्गलकी स्थितिमें उदासीन निमित्त कारण है। ५-आकाश-जो सबसे बड़ा अनंत है यह सबको अवकाश देता है। ६-काल द्रव्य-जो अमूर्तीक है। इसके निमित्तसे सब द्रव्योंकी अवस्थाएँ नएसे पुरानी हुआ करती हैं। ये छः द्रव्य अनादि अनन्त अकृत्रिम, सदासे हैं। शुद्ध द्रव्यों में स्वभाष पर्यायें होती हैं, अशुद्ध द्रव्यों में अशुद्ध पर्यायें होती हैं। यह जगत इनहीका समुदाय है।
पांच अस्तिकाय-छः द्रव्योंमेंसे कालको छोडकर पांचको अस्तिकाय कहते हैं। क्योंकि जीवादि पांच द्रव्य बहु प्रदेशी हैं। परन्तु काल द्रव्य असंख्यात संख्यामें हैं और रत्नराशिके समान लोकाकाशके असंख्यात प्रदेशोंपर अलग २ फैले हैं वे कभी मिलते नहीं इससे कायरूप नहीं हैं। जितने आकाशको एक पुद्गल परमाणु रोकता है उसे प्रदेश कहते हैं। इस प्रदेशरूपी गजसे माप किये जानेपर काल सिवाय पांच द्रव्य बहुप्रदेश रखनेवाले हैं। इसलिये पांचको अस्तिकाय कहते हैं।
सात तत्व-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष । जीव और अजीव तत्वमें ऊपर लिखित छः द्रव्य गभित हैं। आस्त्रव–काँके आनेको आनव कहते हैं। मन, वचन, कायकी क्रियासे व मिथ्यादर्शन,
V॥२५॥