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मोःमा. प्रकाश
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मनिकी पाप प्रकृतीनिविषै तो अल्पकषाय होते थोरा अनुभाग बंधे है। बहुत कषाय होते, घना अनुभाग बंधै है । बहुरि पुण्यप्रकृतीनिविषे अल्पकषाय होते घना अनुभाग बंधै है। | बहुत कषाय होते थोरा अनुभाग बंध है । ऐसें कषायनिकरि कर्मप्रकृतिनिकै स्थिति अनुभाग का विशेष भया तातें कषायनिकरि स्थितिबंध अनुभागबंधका होना जानना। इहां जैसे बहुत । भी मदिरा है अर ताविषै थोरे कालपर्यंत थोरी उन्मत्तता उपजावनेकी शक्ति है तो वह मदिरा हीनपनाको प्राप्त है । बहुरि थोरी भी मदिरा है ताविषे बहुत कालपर्यंत घनी उन्मत्तता उपजावनेकी शक्ति है तो वह मदिरा अधिकपनाकौं प्राप्त है । तैसें घने भी कर्मप्रकृतीनिके परमाण हैं अर तिनिविणे थोरे कालपर्यंत थोरा फल देनेकी शक्ति है तो ते कर्मप्रकृति हीनताकौं प्राप्त | हैं। बहुरि थोरे भी कर्मप्रकृतिनिके परमाण हैं अर तिनिविषै बहुत कालपर्यंत बहुत फल देनेकी
शक्ति है तो ते कर्मप्रकृति अधिकपनाको प्राप्त हैं तात योगनिकरि भया प्रकृतिबंध प्रदेशबंध | | बलवान नाहीं । कषायनिकरि किया स्थितिबंध अनुभागबंध ही बलवान है तातें मुख्यपनै कषाय ही बंधका कारन जानना । जिनिकों बंध न करना होय ते कषाय मति करौ। बहुरि इहां कोऊ प्रश्न करै कि पुद्गलपरमाणू तो जड़ हैं उनकै किछू ज्ञान नाहीं, कैसे यथायोग्य प्रकृतिरूप होय परिणमें हैं ताका समाधान
जैसें भूखा होते मुखद्वारकरि ग्रह्याहुआ भोजनरूप पुदगलपिंड सो मांस शुक्र शो