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मो.मा. प्रकाश
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परन्तु इन किंकरनिकों साथ लेकें जावो तहां वे किंकर अन्यथा परिणमें तौ जाना न होय वा थोरा जाना होय वा अन्यथा जाना होय तैसें कर्मका ऐसा ही क्षयोपशम भया है जो इतने विषयनिविषै एक विषयको एक कालविषै देखो वा जानौ परन्तु इतने बाह्य द्रव्यनिका निमित्त भए देखौ जानौ । तहां वै बाह्य द्रव्य अन्यथा परिणमें तौ देखना जानना न होय वा थोरा होय वा अन्यथा होय ऐसें यह कर्मके क्षयोपशमके विशेष हैं तातैं कर्महीका निमित्त जानना जैसें काहूकै अंधकारके परमाणु आड़े आए देखना न होय । घूघू मार्जारादिक निकै तिनिकों आड़े आए भी देखना होय सो ऐसा यह क्षयोपशमहीका विशेष है। जैसे-जैसें क्षयोपशम होय तैसें तैसें ही देखना जानना होय । ऐसें इस जीवकै क्षयोपशमज्ञानकी प्रवृत्ति पाइये है । बहुरि मोक्षमार्ग विषे अवधि मनःपर्यय हो हैं सो भी क्षयोपशमज्ञान ही हैं तिनिकी भी ऐसें ही एक कालविषै एकक प्रतिभासना वा परद्रव्यका आधीनपना जानना । बहुरि विशेष है। सो विशेष जानना । या प्रकार ज्ञानावरण दर्शनावरणका उदयके निमित्ततैं बहुत ज्ञान दर्शनके अंशनिका तौ अभाव है अर तिनिके क्षयोपशमतें थोरे श्रंशनिका सद्भाव पाइये है । बहुरि इस जीवकै मोहके उदयतै मिथ्यात्व वा कषायभाव हो हैं तहां दर्शनमोहके उदयतै तौ मिथ्यात्वभाव हो है ताकरि यह जीव अन्यथा प्रतीतिरूप श्रद्धान करे है । जैसें है तैसें तो नाहीं माने है अर जैसें नाहीं है तैसें माने है । अमू
ॐ००००
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