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मो.मा.
प्रकाश
| दुःख जिन विषै उपजै ऐसा प्रारंभ करै । बहुरि लोभ होतें पूज्य वा इष्टका भी कार्य होय तहां भी । अपना प्रयोजन साथै, किछू विचार रहता नाहीं। बहुरि तिस इष्टवस्तुकी प्राप्ति भई है ताकी || अनेकप्रकार रक्षा करै है। बहुरि इष्ट वस्तुको प्राप्ति न होइ वा इष्टका वियोग होइ तो आप || बहुत संतापमान होइ अपने अंगनिका घात करै वा विषादिकरि मरि जाय । ऐसी अवस्था लोभ | होते हो है । ऐसें कषायनिकरि पीड़ित हूवा इन अवस्थानिविणे प्रवर्ते है । बहुरि इनि कषायनिकी | साथि नोकषाय हो हैं। जहां जब हास्य कषाय होइ तब आप विकसित होइ प्रफुल्लित होइ सो यह ऐसा जानना जैसा बायवालेका हँसना नाना रोगकरि आप पीड़ित है, कोई कल्पनाकरि हँसने लागि जाय है। ऐसे ही यह जीव अनेक पीडासहित है कोई झूठी कल्पनाकरि || आपका सुहावताकार्य मानि हर्ष माने है। परमार्थतें दुःखी ही है। सुखी तौ कषायरोग मिटें || होगा । बहुरि जब रति उपजै है, तब इष्ट वस्तुविष अतिआसक्त हो है ! जैसे बिल्ली मूंसाकौं |
पकरि आसक्त हो है । कोऊ मारै तौ भी न छोरै । सो इहां इष्टपना है। बहुरि वियोग होनेI का अभिप्रायलिये आसक्तता हो है तातें दुःख ही है। बहुरि जब अरति उपजै तब अनिष्ट | वस्तुका संयोग पाय महा व्याकुल हो है । अनिष्टका संयोग भया सो आपकू सुहावता नाहीं । । सो यह पीड़ा सही न जाय तातें ताका वियोग करनेको तड़फड़े है सो यह दुःख ही है । बहुरि
जब शोक उपजै है तब इष्टका वियोग वा अनिष्टका संयोग होते अतिव्याकुल होइ संताप
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