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मो.मा. प्रकाश
पूर्व शरीरका छोड़ना नवीन शरीरका ग्रहण करना अनुक्रमतें हुआ करै है । बहुरि यह आत्मा । यद्यपि असंख्यात प्रदेशी है तथापि संकोचविस्तारशत्ति.तें शरीर प्रमाण ही रहै है, विशेष | इतना, समुद्घात होते शरीरनै बाह्य भी आत्माके प्रदेश फैले हैं। बहुरि अंतराल समयविषै पूर्वे शरीर छोड़या था तिस प्रमाण रहै हैं । बहुरि इस शरीरके अंगभूत द्रव्य इंद्रिय मन || तिनिके सहायतै जीवके जानपनाकी प्रवृत्ति हो है। बहुरि शरीरकी अवस्थाकै अनुसारि मोहके ||
उदय सुखी दुःखी हो है । कबहूं तो जीवकी इच्छाकै अनुसार शरीर प्रवर्ग है कबहूं शरीर | | की अवस्थाकै अनुसार जीव प्रवते है कबहूं जीव अन्यथा इच्छारूप प्रवर्ते है पुद्गल अन्यथा
अवस्थारूप प्रवर्ते है ऐसें इस नोकर्मकी प्रवृत्ति जाननी। तहां अनादितै लगाय प्रथम तौ | | इस जीवकै नित्यनिगोदरूप शरीरका सम्बन्ध पाइये है । तहां नित्यनिगोदशरीरकौं धरि आयु | पूर्ण भए मरि बहुरि नित्यनिगोदशरीरकों धारै है । बहुरि आयु पूर्ण करि मरि नित्यनिगोदशरीरहीकौं धार है । याही प्रकार अनंतानंत प्रमाण लिये जीवराशि हैं सो अनादितै तहां ही जन्ममरण किया करै हैं । बहुरि तहांत छै महीना अर आठ समयविषे छस्सै आठ जीव निकसै हैं ते निकसि अन्य पर्यायनिकौं धारै हे। सो पृथ्वी जल अग्नि पवन प्रत्येकवनस्पतीरूप एकेंद्रिय पर्यायनिविषे वा बेंद्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रियरूप पर्यायनिविर्षे वा नरक तिर्यंच मनुष्य | देवरूप पंचेंद्रिय पर्यायनिवि भ्रमण करें हैं। बहुरि तहां कितेक काल भ्रमणकरि बहुरि