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मो.मा. प्रकाश
ऐसे स्वभावकरि त्रिकालवर्ती सर्वगुणपर्यायसहित सर्व पदार्थनिकौं प्रत्यक्ष युगपत् चिना सहाय देखे जाने ऐसी आत्माविषे शक्ति सदा काल है। परन्तु अनादितें ज्ञानावरण दर्शनावरणका सम्बन्ध है ताके निमित्ततें इस शक्तिका व्यक्तपना होता नाहीं तिनि कर्मनिका क्षयोपशमतें किंचित् मतिज्ञान वा श्रुतज्ञान पाइये है। भर कदाचित् अवधिज्ञान भी पाइये है । बहुरि अच-|| खुदर्शन पाइये है अर कदाचित् चक्षुदर्शन वा अवधिदर्शन भी पाइये है। सो इनिकी भी। प्रति कैसे है लो दिखाइये है । प्रथम तो मतिज्ञान है सो शरीरके अंगभूत जे जीभ नासिका।। नेत्र कान स्पर्शन ए द्रव्यइंद्रिय अर हृदयस्थानविषै आठ पाँखडीका फुल्या कमलकै आकार द्रव्यमन तिनिके सहायही ते जाने है । जैसें जाकी दृष्टिमंद होय सो अपने नेत्रकरि ही देखें। है परंतु चसमा दीए ही देखें, बिना चसमैके देखि सकै नाहीं । तैसें आत्माका ज्ञान मंद है।
सो अपने ज्ञामहीकरि जाने है परन्तु द्रव्यइंद्रिय वा मनका सम्बन्ध भए ही जाने, तिनि बिना। | जानि सके नाहीं । बहुरि जैसे नेत्र तो जैसाका तैसा है अर चसमावि किछु दोष भया होय । | तो देखि सकै नाहीं अथया थोरा दीसै अथवा औरका और दीसे सैसैं अपना क्षयोपशम तौ || नेसाका तैसा है अर द्रव्यइंद्रिय मनके परमाणु अन्यथा परिणमे होंय तो जानि सकै नाहीं । अथवा थोरा जाने अथवा औरका और जाने। जाते द्रव्यइंद्रिय वा मनरूप परिमाणनिका | परिणमनकै अनुसार ज्ञानका परिणमन होय है । ताका उदाहरण-जैसे मनुष्यादिककै बाल
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