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बारणवरण
प्रावधान
॥२७॥
जन्य पात्र अविरत महान पुण्ययंध करनेवाल जैसा एक में
जय मोक्षमार्गको दृढ करनेवाला है तब अपात्र दान दुर्गतिका कारण है। अपात्रोंको भक्ति पूर्वक दिया हुआ दान मिथ्या श्रद्धान व मिथ्या चारित्रका पोषक है, मिध्वात्वरूपी पापका प्रचारक है ४ इसलिये पाप धकारक है। पापकी अनुमोदना अवश्य पाप लानेवाली है क्योंकि दाताकी विनय मिथ्यामार्गसे होगई । इसलिये भव्य जीव सम्यग्दृष्टी भलेपकार विचार करके अपात्रोंको दान नहीं देकर सुपात्रोंको दान देते हैं और मोक्षमार्गका प्रचार कराते हैं। उत्तम पात्र मुनि, मध्यम पात्र श्रावक, जघन्य पात्र अविरत सम्यग्दृष्टी तीनोंको भक्ति पूर्वक दिया हुआ दान मोक्षमार्गकी भक्ति करना है अतय कर्तव्य है व महान पुण्यबंध करनेवाला है। जिनके निश्चय सम्यग्दर्शन नहीं है परंतु व्यवहार सम्यक्त व व्यवहार चारित्र वैसा ही है जैसा एक मोक्षमार्गीको होना चाहिये वे कुपात्र हैं, उनको भी धर्मात्मा पुरुष दान देते हैं क्योंकि दान देना भी व्यवहार है तथा व्यवहार में व्यवहार ही देखा जाता है व व्यवहारकी ही प्रतिष्ठा की जाती है। निश्चय वचन अगोचर है तथा निश्चय सम्यक अंतर्मुहूर्तमें होसक्ता है व छूट सकता है। अतएव दातार तो जिसका व्यवहार चारित्र शास्त्रोक्त पाएगा उसको पात्र जानकर दान देगा। यदि उस पात्रके अंतरंगमें निश्चय सम्यक्त होगा तो दातारके भाव अधिक निर्मल होंगे। यदि वह सम्यक्त रहित होगा तो भाव कम निर्मल होंगे क्योंकि जैसा निमित्त होता है वैसा परिणाम होजाता है। परिणामों के अनुसार अधिक व कम पुण्यका धंध होगा। अपात्रोंको भक्तिपूर्वक दानका निषेध है। परंतु यदि कोई अपात्र करुणाका पात्र दीखे, भूखा प्यासा हो, रोगी हो, आश्रय रहित हो व विद्या व ज्ञानकी जरूरत रखता हो
तो धर्मात्मा श्रावक उसको दया बुद्धिसे विना भक्ति किये उसका क्लेश मेट सक्ता है। करुणा दानमें ४ पात्र अपात्रका विचार नहीं है, मात्र परोपकार भाव है।
श्लोक-कुगुरु कुदेव उक्तं च, कुधर्म प्रोक्तं सदा।
कुलिंगी जिनद्रोही च, मिथ्या दुर्गतिभाजनं ॥ २७५॥ तस्य दानं च विनयं च, कुज्ञान मृढ दृष्टितं । तस्य दानं चिंतनं येन, संसारे दुःखदारुणं ॥ २७६ ॥
॥३७४॥