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मो.मा.
प्रकाश
जान ही नाही इानका तौ जैनशास्त्रनिविणे प्रसिद्ध कथन है अर जिनिकौं भ्रमकरि अन्यथा ।। जाने।भी जिनकी आज्ञा माननेते जीवका बुरा न होय ऐसा कोई सूक्ष्म अर्थ हो तिनिविप्रै ।। किसीकौं कोई अर्थ अन्यथा प्रमाणतामें ल्यावै तो भी ताका विशेष दोष नाहीं सो गोमट्टसार| विषै कह्या है,
सम्माइट्ठी जीवो,उवइटुं पवयणं तु सद्दहदि। सदहदि असब्भावं,अजाणमाणो गुरुणियोगा ॥१॥
___ याका अर्थ-सम्यग्दृष्टी जीव उपदेश्या सत्य प्रवचनों श्रद्धान करै है अर अजाण| माण गुरुके नियोगः असत्यकों भी श्रद्धान करै है ऐसा कह्या है। बहुरि हमारे भी विशेष | ज्ञान नाहीं है । अर जिनाज्ञा भंग करनेका बहुत भय है परन्तु इसही विचारके बलते ग्रंथ | करनेका साहस करते हैं सो इस ग्रंथविर्षे जैसे पूर्व ग्रंथनिमें वर्नन है तैसें ही वर्नन करेंगे। अथवा कहीं पूर्व ग्रंथनिविषै सामान्य गूढ़ वर्नन है ताका विशेष प्रगटकरि वर्नन इहां करेंगे सो । | ऐसें वर्नन करनेविषे में तो बहुत सावधानी राखंगा अर सावधानी करते भी कहीं सूक्ष्म अर्थ-||
का अन्यथा वर्नन होयं जाय तौ विशेष बुद्धिमान् होय सो सँवारिकरि शुद्ध करियो । यह मेरी प्रार्थना है । ऐसें शास्त्र करनेका निश्चय किया है। अब इहां कैसे शास्त्र बांचने सुनने योग्य
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