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मो.मा.
प्रकाश
है। अब यह मोक्षमार्गप्रकाश नाम शास्त्र रचिए है ताका सार्थकपना दिखाइये है
इस संसार अटवीविङ्ग समस्त जीव हैं ते कर्मनिमित्ततै निपजे जे नानाप्रकार दुःख | तिनकरि पीड़ित हो रहे हैं । बहुरि तहां मिथ्या अन्धकार व्याप्त होय रहा है। ताकरि तहांतें मुक्त होनेका मार्ग पावते नाही, तड़फि-तड़फि तहां ही दुखकौं सहें हैं । बहुरि ऐसे जीवनिका भला होनेकौं कारण तीर्थंकर केवली भगवान् सो ही भया सूर्य ताका भया उदय ताकी दिव्यध्वनिरूपी किरणनिकरि तहांत मुक्तहोनेका मार्ग प्रकाशित किया ।जैसे सूर्यकै ऐसी इच्छा नाहीं जो मैं मार्ग प्रकाशं परन्तु सहज ही वाकी किरण फैले हैं ताकरि मार्गका प्रकाशन हो है तैसें ही केवली वीतराग हैं तातै ताकै ऐसी इच्छा नाहीं जो हम मोक्षमार्ग प्रगट करैं परंतु सहज ही अघातिकर्मनिका उदयकरि तिनिका शरीररूप पुद्गल दिव्यध्वनिरूप परिणम है ता-IN करि मोक्षमार्गका प्रकासन हो है। बहुरि गणधर देवनिकै यह विचार आया जहां केवली सूर्यका अस्तपना होइ तहां जीव मोक्षमार्गकौं कैसे पावै, अर मोक्षमार्ग पाए बिना जीव दुःख सहेंगे ऐसी करुणाबुद्धिकरि अंग प्रकीर्णकादिरूप ग्रन्थ तेई भए महान् दीपक तिनिका उद्योत | किया। बहुरि जैसे दीपकरि दीपक जोवनेते दीपकनिकी परंपरा प्रवत्र्ते तैसें आचार्यादिकनिकरि तिन ग्रंथनितै अन्य ग्रंथ बनाए । बहुरि तिनिहर्ते किनिहू अन्य ग्रंथ बनाए ऐसे ग्रंथनि ग्रंथ होनेते ग्रंथनिकी परंपरा वर्ते है । मैं भी पूर्वग्रंथनितें इस ग्रंथकों बनाऊं हूं। बहुरि जैसे
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