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मा.मा. आपहीत हीनबद्धिके धारक हैं तिनिकों कोऊ युक्तिकरि श्रद्धानी कैसे करै । अर श्रद्धान ही प्रकाश सर्व धर्मका मूल है । बहुरि वक्ता कैसा चाहिये जाकै विद्याभ्यास करनेते शास्त्र बांचने योग्य ||
बुद्धि प्रगट भई होय, जाते ऐसी शक्ति बिना वक्तापनीका अधिकारी कैसे होय। बहुरि वक्ता | कैसा चाहिये जो सम्यग्ज्ञानकरि सर्व प्रकारके व्यवहार निश्चयादिरूप व्याख्यानका अभिप्राय पिछानता होय, जाते जो ऐसा न होय तो कहीं अन्य प्रयोजन लिए व्याख्यान होय ताका |||
अन्य प्रयोजन प्रगटकरि विपरीत प्रवृत्ति करावै । बहुरि वक्ता कैसा चाहिये जाकै जिनआज्ञा || । भंग करनेका बहुत भय होय। जाते जो ऐसा न होय तो कोई अभिप्राय विचारि सूत्रविरुद्ध 1 उपदेश देय जीवनिका बुरा करै । सो ही कह्या है
बहुगुणविजाणिलयो, असुत्तभासी तहावि मुत्तव्यो। ___जह वरमणिजुत्तो वि हु विग्घयरो विसहरो लोए ॥१॥
याका अर्थ-जो बहुत क्षमादिक गुण अर व्याकरण आदि विद्याका स्थान है तथापि उत्सूत्रभाषी है तो छोड़ने योग्य ही है जैसे उत्कृष्टमणिसंयुक्त है तो भी सर्प है सो लोकवि विनका ही करणहारा है। बहुरि वक्ता कैसा चाहिये जाकै शास्त्र बांचि आजीवका आदि लौकिक कार्य साधनेकी इच्छा न होय । जातें जो आशावान् होय तौ यथार्थ उपदेश देय सकै नाहीं, वाकै तौ किछु श्रोतानिका अभिप्रायके अनुसारि व्याख्यानकरि अपने प्रयोजन
ఆంతరంగం
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