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मो.मा.
प्रकाश
अनादितें तीर्थंकर केवली होते आये हैं तिनिकै सर्वका ज्ञान हो है तातें तिनि पद-11 निका वा तिनिके अर्थनिका भी ज्ञान हो है । बहुरि तिनि तीर्थंकर केवलीनिका जाकरि अन्य। जीवनिक पदनिका अर्थनिका ज्ञान होय ऐसा दिव्यध्वनिकरि उपदेश हो है। ताके अनुसार गणधरदेव अंग प्रकीर्णकरूप ग्रंथ गूंथें हैं । बहुरि तिनिकै अनुसारि अन्य आचार्यादिक नाना | |प्रकार ग्रंथादिककी रचना करे हैं। तिनिकू केई अभ्यासें हैं केई कहै हैं केई सुने हैं ऐसें परं-1 पराय मार्ग चल्या आवै है । सो अब इस भरतक्षेत्र विषै वर्तमान अवसर्पिणी काल है। तिस| विषे चौबीस तीर्थंकर भए तिनिविर्षे श्रीवर्द्धमान नामा अंतिम तीर्थंकर देव भया । सो केवलज्ञान विराजमान होइ जीवनिकों दिव्यवनिकरि उपदेश देता भया। ताके सुननेका निमित्त पाय गौतम नामा गणधर अगम्य अर्थनिकों भी जानि धर्मानुरागके वशतें अंग प्रकीर्णकनिकी | | रचना करता भया । बहुरि वर्द्धमान स्वामी तौ मुक्त भए सहां पीछे इस पंचम कालविणे तीन | केवली भए गोतम १, सुधर्माचार्य २, जंबूस्वामी ३॥ तहां पीछे कालदोषतें केवलज्ञानी होनेका तौ अभाव भया । बहुरि केतेक काल तांई द्वादशांगके पाठी श्रुतकेवली रहे पीछे तिनिका भी अभाव भया । बहुरि केतक काल तांई थोरे अंगनिके पाठी रहे पी तिनिका भीअभाव भया। तब आचार्यादिकनिकरि तिनिके अनुसारि बनाए ग्रंथ वा अनुसारी ग्रंथनिके अनुसारि बनाए ग्रंथ तिनिहीको प्रवृत्ति रही।तिनिविष कालदोषतेंदुष्टनिकरि कितेक ग्रंथनिकी व्युच्छित्ति भई वा महान् ग्रंथनि