________________
मो.मा.
स्कार किया तिगका स्वरूप चिंतवन कीजिये है । सहाँ प्रथम अरहंतनिका स्वरूप विचारिये है,प्रकाश
जे गृहस्थपनौ त्यागि मुनिधर्म अंगीकार करि निजस्वभाव साधनतें च्यारि घातिया कर्मनिकों खिपाय अनन्तचतुष्टय विराजमान भये । तहां अनन्तज्ञानकरि तो अपने-अपने अनन्त गुणपर्याय M सहित समस्त जीवादि द्रव्यनिकौं युगपत् विशेषपनेकरि प्रत्यक्ष जाने हैं। अनन्तदर्शनकरि । तिनकों सामान्यपनै अवलोके हैं । अनन्तवीर्यकरि ऐसी (उपर्युक्त) सामर्थ्यको धारै हैं । अनन्त। सुखकरि निराकुल परमानन्दको अनुभव हैं। बहुरि जे सर्वथा सर्वरागद्वेषादिविकारभावनिकरि | रहित होइ शान्तरसरूप परिणए हैं। बहुरि क्षुधा, तृषा आदिसमस्तदोषनितें मुक्त होय | देवाधिदेवपनाकों प्राप्त भये हैं। बहुरि आयुध अंबरादिक वा अंग विकारादिक जे काम | क्रोधादिक निन्यभावनिके चिन्ह, तिनकरि रहित जिनका परम औदारिक शरीर भया है। बहुरि जिनके वचनितें लौकविर्षे धर्मतीर्थ प्रवत्र्ते है, ताकरि जीवनिका कल्याण हो है। बहुरि जिनकै लौकिक जीवनिकं प्रभुत्व माननेके कारण अनेक अतिशय अर नानाप्रकार विभव तिनका । संयुक्तपणा पाइये है । बहुरि जिनको अपना हितके अर्थि गणधर इन्द्रादिक उत्तम जीव सेवे
हैं। ऐसे सर्वप्रकार पूजने योग्य श्री अरहंतदेव हैं, तिनकों हमारा नमस्कार होहु । अब | सिद्धनिका स्वरूप ध्याइये है,
जे गृहस्थअवस्था त्यागि मुनिधर्म साधनतेंच्यारि घातिकर्मनिका नाश भये अनन्तचतुष्टय