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२-गृहारंभी-जो घरके कामकाजमें, भोजनादि आरंभमें, मकान, कूप, बावडी, पाग बना कारणचरण
2 में हिंसा होती है वह गृहारंभी है। भ३७१०
-विरोधी-जो कोई दुष्ट चोर, बदमाश या शत्रु जान मालको कष्ट देनेको उतारू हो व देशका नाश करे तथा किसी अन्य उपायसे उनका निरोध न होसके तो उनसे अपनी व अपने आधीनोंकी रक्षा हेतु जो शस्त्रका प्रयोग करना उसमें जो विरोधी मानवोंकी हिंसा होगी वह विरोधी रिसा है।
गृहस्थ श्रावक इन तीन प्रकारकी हिंसाको छोड नहीं सका-यथाशक्ति कम करता है परंतु संकल्पी हिंसा त्रस जंतुओंकी नहीं करता है। वृथा अस घात नहीं करता है जैसे शिकार खेलकरके, पशुबलि करके व मांसाहारके निमित्त वध नहीं करता व कराता है। जैसा अमितगति महाराज कहते हैं
देवातिथिमंत्रीपविपित्रादिनिमिततोपि संपन्ना । हिंसा पते नरके पुनरिह नान्यथा विहिता ॥ २९-६ ॥ _ भावार्थ-देव, गुरू, औषधि, पितर आदिके निमित की गई हिंसा भी नरकमें डालती है तो और प्रकार करी हुई नर्क में क्यों न हारे।
रिसादि पांच पापोंसे गृहस्थीके कोटि त्याग होता है, ९कोटि साधओंके होता जैसा अमितगति कहते हैं
त्रिविधा द्विविधन मता विरविहिंसादितो गृहस्थानां । त्रिविधा त्रिविधेन मता गृहचारकतो निवृतानां ॥१९-६॥
मावार्य-गृहस्यों के हिसादि पापोंका त्याग तीन मन, वचन, कायके द्वारा करना व कराना नहीं इस तरह छःप्रकार त्याग है । मुनियों के जो गृह त्यागी ई-मन, वचन कायके द्वारा करना, कराना व अनुमोदना ऐसे ९ प्रकार त्याग है। गृहस्थीके अनुमोदना त्याग १०वी प्रतिमामें होती है। ९वीं तक करना व कराना मात्रका त्याग है। जहांतक गृहस्थ हैं वहांतक अनेक कार्यों में अनुमति देनी पर जाती है। - सत्य अणुव्रतमें गृहस्थीको आरम्भ कार्य सम्बन्धी वचन जो हिंसाके कारण हैं उनके सिवाय अन्य प्रकार असत्य वचनका त्याग होता है। जैसा पुरुषार्थसिक्युपायमें कहा है
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