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मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रन्धकी विषय सूची।
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- प्रथम अधिकार--
संयोग कैसे कर सकते हैं ।
... ... ... ३० १ मंगलाचरण . ... ... ... ... १
नवीन बंध कैसे होता है
शान हीन जड़ परमाणु यथायोग्य प्रकृतिरूप होकर अरहंतदेवका स्वरूप
परिणमन कैसे करते है ... ... ... ४२ सिद्धोंका स्वरूप
कर्मों की बंध उदय सत्ता रूप अवस्था ... श्राचार्य उपाध्याय और साधुओका स्वरूप
द्रव्यकर्म और भावकर्म ... ... वर्तमान कालके चौवीस तीर्थंकरोंको, विदेह क्षेत्रके ती
नोकर्मका स्वरूप और उसकी प्रवृत्ति ... थंकरोको, कृत्रिमाकृत्रिम जिनविम्बों को और जैनग्रन्थों
नित्यनिगोद और इतरनिगोद ... ... ... ४७ को नमस्कार
= कर्मवन्धनरूपरोगके निमित्तसे जीवकी अवस्था... ४८ श्ररहंतादि इष्ट क्यों हैं? उनसे जीव का कल्याण किस।
शाजावरण दर्शनावरण कर्म निमित्तक अवस्था, मतिप्रकारहोता है? ... ... ... ...
शानकी पराधीन प्रवृत्ति, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान चक्षुदर्शमंगलाचरण करने का कारण ...
न, अचक्षुदर्शनकी प्रवृत्ति, ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग २ यह ग्रन्थ प्रमाण क्यों है? ...
आदिकी प्रवृत्ति ... ... ... ... ४६ ३ कैसे शास्त्र यांचने सुनने योग्य हैं ?
दर्शनमोहके उदयसे जीवकी अवस्था ... ... ४ यताका स्वरूप ... ... ...
चारित्रमोहके तथा अन्तरायके उदयसे जोधकी अवस्था ५५ ५ श्रोतका स्वरूप ...
4: वेदनीयादि अघाति कर्मजनित अवस्था... ... ६२ ६ मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रन्थकी सार्थकता ...
तीसरा अधिकारद्वितीय अधिकार
1 संसार अवस्थाके नानाप्रकारके दुःखोका वर्णन ६७ ७,कर्मबन्धन रोगका निदान ... ... ... ३२ दुःखके कारण मिथ्यावर्शन अज्ञान छासंयम ... कर्मका सम्बन्ध अनादिकालसे है ... ...
दुःख दूर करने के लिये जीव क्या उपाय करता है रागादि निमित्तक कर्मों के अनादिपनेकी सिद्धि ..... वे उपाय भूठे क्यों हैं ? सांचे उपाय ... अमूर्तीक आत्मासे मूर्तीक कोका बन्ध कैसे होता है ३५ एकेन्द्रिय पर्यायके दुःख ... घातिया अघातिया कर्म और उनके कार्य ...
द्वीन्द्रियादि पर्यायों के दुःख ... जड़फर्म जीवके स्वभावका घात और बाह्य सामग्री का नरकगतिके दु.ख ... ... ...