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प्रकाश करना, विद्यालय स्थापन करना, छात्रोंको सहाय करना, विद्वतापूर्ण भाषण देना, मिथ्यास्वभाव इटाकर सम्यक्तकी प्राप्ति कराना, उत्तम पात्रोंको शास्त्र भेट करना, मध्यम पात्रोंको भी शास्त्र देना । यदि विद्याकी कमी हो तो विद्या साधन जोड देना । जघन्य पात्रोंको भी शास्त्र देना। व उनकी ज्ञान वृद्धिका उपाय कर देना।
-आहारदान-तीनों पात्रोंको गथायोग्य भक्ति करके भोजन कराना। यह धर्मकी वृद्धि व शरीरकी स्थिरताका कारण है।
३-औषधिदान-पात्रोंको रोगग्रस्त जानकर रोग मेटनेके लिये औषधिका दान करना, औषधालय खुलवाना, शुद्ध प्रामुक दवा बंटवाना, रोगियोंकी टहल चाकरी करना ।
४-अभयदान-पात्रोंको आश्रय देना, निर्भय करना, योग्य स्थान बताना, उनके ऊपर संकट पहें तो निवारण करना । रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें भी चार दान यही कहे हैं
आहारौषधयोरप्युपकरणावासयोश्च दानेन । वैय्यावृत्त्यं ब्रुवते चतुरात्मतत्वेन चतुरस्राः ॥ ११ ॥ भावार्थ-अरहंत भगवानने चार तरहसे पात्रोंकी सेवा करनेको कहा है। आहार देकर, औषधि देकर, उपकरण अर्थात् शाखा देकर प आवास अर्थात् निर्भय आश्रय स्थान देकर । श्री अमितगति श्रावकाचारमें नवम परिच्छेदमें कहा है
अभयान्नौषधिज्ञानभेदश्चतुर्विधम् । दानं निगद्यते सद्भिः प्राणिनामुपकारकम् ॥ ८॥ भावार्थ-ज्ञानियोंने प्राणियों के उपकार करनेवाले चार ही दान कहे हैं-अभयदान, अन्नदान, औषधिदान तथा ज्ञानदान ।
न सुवर्णादिकं देयं न दाता तस्य दायकः । न च पात्रं गृहीताऽस्य निनानामिति शासनं ॥ ७९ ॥
भावार्थ-प्लुवर्ण आदिक नहीं देना चाहिये । न दाता सचा दातार है न लेनेवाला सचा पात्र है ऐसी श्री जिनेन्द्रोंकी आज्ञा है। कन्यादान भी दान नहीं है। वहीं कहा है
या धर्मवनकुठारी पातकवसतिस्तपोदया चौरी । वैरायासासूया, विषादशोक श्रमक्षोणी ॥ १७॥ यस्यां सक्ता जीवा दुःखतमान्नोत्तरंति भवनलः । कः कन्यायां तस्यां दवायां विद्यते धर्मः ॥१८॥
भावार्थ-जो कन्या धर्मवन काटनेको कुल्हारी समान, पापकी वसती, तप व दयाकी चो वैर, उद्यम, इर्षा, विषाद, शोक, खेदकी भूमिका जननी है जिस कन्यामें आसक्त जीव दुःखमई
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