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प्रावकाचार
उनके ऊपर एक एक अक्षर पीतवर्णका इन सोलह स्वरोंमें संक्रमणसे लिख ले । अ आ इ ई उ वारणतरण ल ल ए ऐ ओ औ अं अः। इन अक्षरोंको क्रमसे पत्तोंपर फिरता हुआ विचारे । दसरा कमला ॥१९॥
अपने हृदयस्थानमें सफेद रंगका चौवीस पत्रोंका विचार करे । कर्णिकाको लेकर २५ स्थानोंपर पीले रंगके २५ अक्षर लिखे हुए विचारे । क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द धन, पक ब भ म । फिर तीसरा कमल मुख स्थानपर आठ पत्तोंका सफेद रंगका विचारे। इनके हरएक पत्तेपर
क्रमसे पीत रंगका लिखा हुआ य र ल व श ष स ह इन आठ अक्षरोंको क्रमसे घूमता हुआ विचारे। ४ ये सब अक्षर श्रुतज्ञानके मूल हैं। इनमें सर्व श्रुतज्ञान गर्भित है ऐसा अडान रखता हुआ इनको
घ्यावे । फिर विचार करे कि बादशांग वाणीका सार एक शुद्धात्मा है। इस तरह शुद्धात्मापर लक्ष्य लेजाकर फिर अपने आत्मापर आजावे। इस तरह लगातार नित्य कुछ देरतक ध्यान करे । इसका लगातार अभ्यास करनेसे शास्त्रज्ञानमें बुद्धिकी प्रबलता होती है। श्रुतज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम होता है और धीरे धीरे द्रव्य, क्षेत्र, काल भावानुसार वह सर्व बादशांगका जाननेवाला होजाता है। इस ध्यानसे परिणामोंकी बहुत उज्वलता होती है। इस पदस्थ ध्यानको करते हुए याताको पूर्ण श्रद्धा व निर्मल ज्ञानको रखना चाहिये । लक्ष्य शुद्धात्माका ही रखना चाहिये।
इसतरह यह पदस्थ ध्यान बहुत कार्यकारी है। इनही मंत्रोंका जप भी किया जाता है ॐ ध्यान भी किया जाता है। द्रव्यसंग्रहमें कहा है:
पणतीस सोल छ पण चदु दुगमेगं च जवह झाएह । परमेट्ठि वाचयाणं अण्णं च गुरुवएसेण ॥ भावार्थ-परमेष्टी के स्वरूपको बतानेवाले ३५ आदि सात प्रकारके मंत्रोको जपो और ध्यावी। और भी मंत्रोंको गुरुसे जानकर जपो और ध्याओ।
वे सात प्रकार मंत्र हैं
(१) ३५ अक्षर-णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आहरियाणं, नमो उवमायाणे, ४ णमो लोए सब्यसाहूर्ण।
१६ अक्षर-"अहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः। ६ अक्षर-अरहत सिद्ध ।
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