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विशेषार्थ-यहांपर ग्रन्थकर्ताने मिथ्या उपदेशकोंके ऊपर लक्ष्य दिया है। जगत में मिया वारणवरण
मार्गके प्रचारक भी पारधीके समान हैं। जो प्राणियोंको सुख पानेका व पुण्य कमानेका विश्वास ॥१२९॥
दिलाते हैं और वीतराग विज्ञानमय मार्गसे छुडाकर रागद्वेष पूर्ण कुमार्गमें लगा देते हैं, मिया देवोंकी आराधनामें, पशु बलिमें, शृंगार रसमें फंसा देते हैं। तथा जो यूत रमण आदि व्यसनों में फंसा देते हैं । लाखों ही प्राणी मोक्षमार्गसे विरुद्ध उपदेशके द्वारा कुमार्गमें अपनी श्रद्धा करके अधममें धर्म मानकर अपना अहित करते हैं। बहुतप्ते कुगुरु साक्षात् जानते हैं कि रागद्वेष वईक मार्ग कमार्ग है फिर भी वे अपना स्वार्थ साधनके लिये, भक्तोंसे धन लेनेके लिये, अपने विषयोंकी कामनाकी तृप्तिके लिये कुमार्गका उपदेश देकर पत्थरकी नौकाका सा काम करते हैं। वे आप भी संसा. रमें डूबते हैं और औरोंको भी डुवाते हैं। धनकी तृष्णा मानवोंको अंध बना देती है। इसके लिये मानव क्या क्या कुकर्म नहीं करता है। जो ऐसा कुमार्ग चलाते हैं वे घोर पापका बंर करते हैं । अपना संसार अनन्त काल तक दृढ करते हैं। वे निगोदमें, कीटादि विकलत्रयों में, दीनहीन पशु पर्यायोंमें, दीन मानवों में, नर्कमें वारवार उपज कर कष्ट भोगते हैं और अज्ञान व तृष्णामें पडे हुए रात दिन चाहकी दाहमें दहते रहते हैं।
श्लोक-संसार पारधि विश्वास, जन्ममरणं च प्राप्यते ।
जे जीव अधर्म विश्वासं, ते पारधी जन्म जन्मयं ॥१२३॥ अन्वयार्थ (संसार पारधि) लौकिक शिकारीका (विश्वास) विश्वास करनेसे (जन्म मरणं च ) इस V एक जन्म में ही मरण (प्राप्यते ) होता है (जजीव) जो जीव ( अधर्म पारधी) मिथ्या धर्मरूपी पारधीका (विश्वासं) विश्वास करते हैं (ते) वे जीव (जन्म जन्मयं ) अनेक जन्मोंमें मरण करते हैं।
विशेषार्थ-जो पशु या पक्षी पारधी द्वारा बिछाए हुए जाल में हमें सुख मिलेगा ऐसा विश्वास करके आते हैं और फिर अपने प्राण गमाते हैं। यह शिकारी तो एक ही जन्ममें मारता है परन्तु जो
मूढ प्राणी अधर्मको धर्म मानकर उसकी सेवा करते हैं उनको मिथ्यात्व कर्मका ऐसा बंध होता है V कि जिसका छूटना कठिन होता है। वे पुन: पुन: दुर्गतिमें पड़कर अशुभ कष्टदायक जन्म धारते हैं
और मरते हैं। जो कुगुरु मिथ्या धर्मका उपदेश देते हैं वे बड़े भारी निर्दयी पारधी हैं। मिथ्यात्वके