Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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देशयामि समीचीनं, धर्म कर्म-निबर्हणम्। संसारदुखतः सत्वान् यो धरत्युत्तमेसुखे॥(2)
(र.श्रा.) __मैं (समन्तभद्राचार्य) कर्मों के नाशक, अबाधित और उपकारी उस धर्म का कथन करूंगा जो प्राणियों को संसार के शारीरिक और मानसिक आदि दुःखों से निकाल कर स्वर्ग और मोक्ष आदि के सुखों को प्राप्त कराता है।
सदृष्टिज्ञानवृत्तानि, धर्मधर्मेश्वरा विदुः।
यदीय-प्रत्यनी-कानि, भवन्तिभवपध्दतिः।।(3)
जो प्राणियों को संसार के दुःखों से निकालकर स्वर्ग आदि के उत्तम सुखों को प्राप्त कराता है उसे धर्म बतलाया है। इसीलिये प्राणियों को संसार के दुःखों से छुड़ाकर स्वर्ग आदि के सुखों को प्राप्त कराने के कारण सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र धर्म हैं तथा मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र अधर्म हैं क्योंकि ये प्राणियों को संसार के दुःखों में ही फँसाते हैं।
रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र) को धर्म या मोक्षमार्ग इसलिए कहते हैं कि इनसे जीव बन्धन में नहीं पड़ता वरन् बन्धन से मुक्त होता है। जैसा कि अमृतचन्द्र सूरि ने कहा है
दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः। .... स्थितिरात्मनि चरित्रं कुत एतेभ्यो भवति बंधः ॥(216)
___ (पु.उ.) सम्यग्दर्शन आत्मा की प्रतीति को कहा जाता है। आत्मा का सम्यक प्रकार ज्ञान करना बोध-सम्यग्ज्ञान कहलाता है। आत्मा में स्थिर होना अर्थात् लवलीन होना सम्यक् चारित्र कहा जाता है। इनसे बन्ध कैसे हो सकता है? अर्थात् नहीं हो सकता। - आचार्य प्रवर कुन्द-कुन्ददेव ने मोक्ष मार्ग का संक्षिप्त सारगर्भित वर्णन करते हुए कहा है
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