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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
क्षमा, करुणा, दया उनके अन्तर्जीवन के भूषण थे। वाणी में | युग पुरुष को शत-शत नमन !
सहज आकर्षण था, माधुर्य था। जीवन के कण-कण में सत्य, -शासन प्रभाविका पूज्या श्री यशकुंवर जी म.सा.
अहिंसा की ज्योति प्रज्वलित थी। जिनका जीवन उस स्वर्ण-कलश के
समान था, जिसमें सद्गुणों की दिव्य सुधा भरी हुई थी। जिनके परमादरणीय, यशस्वी व्यक्तित्व के धनी, ओजस्वी प्रवचनकार, अन्तर् में निहित थी संघ-समाज एवं राष्ट्र के कल्याण की। अभ्युदय आगमज्ञ, श्रद्धेय, वंदनीय, उपाध्यायप्रवर स्व. श्री पुष्कर मुनिजी म. की मंगल भावनाएँ, श्रमण संघ की नींव को सुदृढ़, सशक्त बनाने सा. की प्रथम पुण्य तिथि पर एक स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित होने जा एवं संघ-संगठन की मंजुल कामनाएँ! रहा है, हार्दिक प्रसन्नता।
आज वह दिव्यात्मा इस लोक से प्रयाण कर गया है, किन्तु महापुरुषों की पुनीत स्मृति तो प्रतिपल बनी रहती है क्योंकि वे उनका यश:काय आज भी अमर है। उनके महान् मंगलमय आदर्श इस लोक से प्रयाण कर जाते हैं किन्तु फिर भी अपने अनुपम भ्रमित मानव को दिशाबोध देते रहेंगे। भव्यों का पथ प्रशस्त करते आदर्शों की उज्ज्वल रेखा छोड़ जाते हैं। वह अमिट स्मृति रेखा रहेंगे। कभी भी धूमिल नहीं होती है। निरन्तर प्रकाशमान रहती है।
अंत में मैत्री, ममता एवं मानवता के श्रेष्ठ पुजारी को शत-शत यही कारण है कि उदयपुर की महिमामयी पुण्य धरा जहाँ । वंदन! नमन! चादर समर्पण की सुमंगल बेला में धरती का कण-कण मुस्काया
"महिमा-मण्डित ज्योतिपुरुष, करुणा के तुम सागर हो। था, उसी पुनीत धरा पर उपाध्यायश्री जी के स्वर्गरोही हो जाने से
लाखों जन के तारणहारे, “पुष्कर" ज्ञान सुधाकर हो॥ सभी की हर्षित मनः कलियाँ मुरझा गयीं थीं।
अवनितल के दिव्य दिवाकर, संतरल "पुष्कर" मुनिराज। कारण-श्रमण उपवन का महकता सुवासित एक दिव्य सुमन
सुमनाञ्जलि अर्पित तुमको श्रमण संघ के निर्मल ताज॥" काल-कवलित हो गया। सद्गुण की दिव्य-पराग विश्व में फैलाकर। अवनितल का महान् दिव्य दिवाकर ज्ञानालोक वसुधा पर विकीर्ण कर धरा धाम को दिव्य प्रकाश से भरकर अस्ताचल पर चिर - विश्राम के लिए चला गया। ज्ञान सुधाकर अपनी ज्ञानामृत वृष्टि से
अद्भुत व्यक्तित्व और कृतित्व सभी को नव-जीवन प्रदान कर न जाने अनंत में कहाँ समा गया? क्रूरकराल काल की आँधी से असमय में ही वह हँसता-खिलता
-साध्वीरल श्री पुष्पवती जी म. - सुविकसित दिव्य पुष्प टहनी से टूटकर धराशायी हो गया।
महापुरुषों का व्यक्तित्व बहुत ही अद्भुत और निराला होता है। _एक पुण्यात्मा ज्योतिपुरुष देह देवल को सूना करके इस लोक समाज की संकीर्ण सीमाओं में आबद्ध होकर भी वे अपना 25 से प्रयाण कर गया। गुणों के अगाध सागर की महिमा का गान कैसे सर्वतोमुखी विकास कर जन-जन के मन में अनंत आस्था समुत्पन्न
करूँ? विशाल गुण-गरिमा का अंकन लघु लेखनी से कैसे करूँ? | करते हैं, उनकी दिव्यता-भव्यता और महानता को निहारकर विश्वविश्रुत, जन-जन के वंदनीय करुणा निकेतन, ज्ञान के अक्षय । जन-जन के अन्तर्मानस में अभिनव आलोक जगमगाने लगता है, वे भण्डार, समता-सरलता के धाम, संयम-साधना के धनी, दिव्य समाज की विकृति को नष्ट कर संस्कृति की ओर बढ़ने के लिए द्रष्टा, जन-जन की आस्था के अमृत सिन्धु, ज्ञान भानु, अमृतयोगी, आगाह करते हैं, वे आचार और विचार में अभिनव क्रांति का ज्योतिर्धर दीप मणि के सदृश दमकता व्यक्तित्व, अध्यात्म-साधक, शंख फूंकते हैं, वे अध्यवसाय के धनी होते हैं जिससे कंटकाकीर्ण
राजस्थान केसरी उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. के विराट् । दूरगम पथ भी सुमन की तरह सहज, सुगम हो जाता है। पथ के 2200 व्यक्तित्व को सीमित शब्दावली कब अभिव्यक्त कर सकती है। ण शूल भी फूल बन जाते हैं, विपत्ति भी संपत्ति बन जाती है, उन्हीं सागर से भी अधिक गंभीरता, चन्द्र से भी अधिक शीतलता,
महापुरुषों की पावन पंक्ति में आते हैं श्रद्धेय सद्गुरुवर्य सूर्य से भी अधिक तेजस्विता, पर्वत-सी ऊँचाई होती है संत जीवन
अध्यात्मयोगी उपाध्यायश्री पुष्कर जी म.। 59 में। उपाध्यायश्री का जीवन भी इन्हीं सद्गुणों से समन्वित था। आपश्री की दार्शनिक मुख मुद्रा पर चमकती-दमकती हुई
जिनके जीवन में हिमाद्रि-सी अडिगता थी, अग्नि-सी तेजस्विता थी, निश्छल स्मित रेखा उतफूल नीलकमल के सदृश मुस्कुराती हुई वायु सी गतिशीलता थी। जिनका जीवन-दीप भीषण झंझावातों में स्नेहस्निग्ध, निर्मल नेत्र, स्वर्ण कमल पत्र के समान चमकता और भी अकम्प बनकर प्रकाश फैलाता रहा था। जो वात्सल्यवारिधि थे। दमकता हुआ सर्वतोभद्र भव्य ललाट जिसे निहारकर किसका हृदय सहज सरलता, कोमलता एवं मृदुता उनके जीवन में ओत-प्रोत थी। श्रद्धा से नत नहीं होता था, जितना आपका बाह्य व्यक्तित्व कोमलता एवं सरलता संत जीवन का भूषण है-"शमोहि नयनाभिराम था, उससे भी अधिक मनोभिराम आभ्यन्तर व्यक्तित्व यतीनां भूषणं न भूपतीनाम्।"
था। आपकी मंजुल मुखाकृति पर निष्कपट विचारधारा की भव्य
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