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'मुनि रमेश' 'राजेन्द्र मुनीश्वर',
गुणी 'गणेश' 'गीतेश' महान ।
(२१)
(२२)
" शास्त्री" और "एम. ए." कोई,
'मुनि दिनेश' 'नरेश' 'जिनेन्द्र मुनि',
है "बी. कॉम." "विशारद" और ।
विद्या, बुद्धि विलक्षण लखकर, लखकर ज्ञान-विज्ञान ।
उपाध्याय आगम में जो,
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ऊँचे शिक्षण से शिष्यों को,
पढ़ने की अभिलाषा आशा, लेकर जो भी आते थे।
(२३)
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'मुनि सुरेन्द्र जी' गुण की खान ॥
जैन संघ ने सादर - सादर,
(२५)
क्या मजाल जो शब्द एक भी, समझ किसी के न आये।
(२४)
उपाध्याय से उच्च पदों का, सचमुच मुश्किल पाना है।
आगे आप अगर थे जप में,
आगम उनको सादर सादर,
(२६)
अतः सभी से सही अर्थ में,
गुण पच्चीस बताये हैं।
विज्ञ बनाया था हर तौर ॥
(२७)
उपाध्याय पद किया प्रदान ॥
पाकर के भी सही अर्थ में,
तप में पीछे नहीं रहे।
(२८)
सांगोपांग पढ़ाते थे।
"उपाध्याय" थे कहलाये ॥
शीशे जैसे स्पष्ट आप में,
उसको कठिन निभाना है ।
आए नगर सवाये हैं।
योगीराज आपको दुनिया,
कहिये कैसे नहीं कहे ॥
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सबको ही आकर्षित हर्षित, करने वाली बोली थी।
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ |
(२९)
मानो मुख में मधु ही था या,
(३०)
परखा निर्धन न धनवान।
छोटा-बड़ा कभी न परखा,
दाँतों तले दबाता उंगल,
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राग-द्वेष से दूर आप थे,
देख-देख जग त्याग महान्।
जैन धर्म के श्रमणसंघ के,
गुणानुवाद करें हम कितना,
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(३१)
संयम चुस्त निभाने वाले.
अग्रगण्य उजियारे थे।
चैत्र शुक्ल एकादश विक्रम,
(३२)
नहीं गुणों का आता अन्त।
सबको प्यारे सब से न्यारे.
(३३)
" गीदड़बाहा मण्डी" में जो,
दो हजार था और पचास ।
शर्बत मिश्री झोली थी।
(३४)
ढूंढें कितना किन्तु आप सा,
सबको समझा एक समान ॥
(३५)
विरले होंगे आप समान ॥
पंजाबी मुनि चन्दन" है।
जगमग तेज सितारे थे ।
नगर "उदयपुर" कर संथारा,
मुश्किल मिलना सच्चा संत ॥
स्वर्गलोक जा किया निवास ॥
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि को, bong
करता शत-शत वन्दन है |
धर्माचरण से प्राणी का अंतरंग विकसित होता है और अंतरंग
निखार की आभा ऊपर भी झलकने लगती है।
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
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