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| वाग् देवता का दिव्य रूप “खुले मुँह बोले नहीं" यह संयम का मूल।
वीरा आई जो, वीरा आई जो, थे तपस्या रे माय हो। बाँधे जो मुखवस्त्रिका, सम्भव क्यों हो भूल?
वीरा थां बिना सूनो लागसी जी॥ बाल्य-जीवन का वर्णन करते हुए कवि ने उत्तम माता की वीरा जग में, वीरा जग में सगलो साथ हो। सन्तान उत्तम होती है, यह प्रतिपादन किया है। उसके कुछ पद्य वीरा मिल्यो न मिल जावसी जी॥ देखिए
-भाई बहन को उत्तर देता हैउत्तम शिशुओं की माता भी,
बेनड़ आयो बेनड़ आयो मैं मरुधर सूं चाल हो। होती उत्तम गुण वाली।
बेनड़ तपस्या रो भाव देखने जी॥ उत्तम फूल उगाने वाली,
बेनड़ थारो, बेनड़ थारो, मैं धर्म रो वीर हो। उत्तम होती है डाली॥
बेनड़ लायो मैं तपस्या री चूंदड़ी जी॥ उत्तम रंग, अंग भी उत्तम,
आपने मोहग्रस्त व्यक्तियों को फटकारते हुए कहा हैउत्तम संग मिला सारा।
आयो केवाँ ने, वाह-वाह आयो केवाँ ने। उत्तमता को जाना जाता,
थे अमर नहीं ठोरे वाने के आयो केवाँ ने॥ उत्तम लक्षण के द्वारा॥ ग्राम्य संस्कृति का चित्रण करते हुए आपश्री ने लिखा हैगाँवों में है धर्मलाज शुभ, गाँवों में है नैतिकता।
कूड़-कपट कर माल-कमाई, तिजोरी में राख्यो हो।
कालो धन नहीं रेला थारे, इन्दिरा भाख्यो हो॥ बसी वास्तविकता गाँवों में, शहरों में है कृत्रिमता॥ धर्म के मर्म पर प्रकाश डालते हुए कवि ने कहा है
गुरुदेवश्री निस्संदेह, निर्विवाद रूप से एक सुलझे हुए, समर्थ,
सफल कवि थे। उनकी कविताओं में भाषा की दुरूहता नहीं, किन्तु दूध-दूध होते नहीं, सारे एक समान।
भावों की गम्भीरता है। यह एक सामर्थ्यवान कवि में ही संभव हो अर्क दुग्ध के पान से पुष्ट न बनते प्राण ॥
सकता है। धर्म-धर्म कहते सभी, धर्म-धर्म में फर्क।
उनका अधिकांश कविता-साहित्य अप्रकाशित है। आपश्री ने मर्म धर्म का समझ लो, करके तर्क-वितर्क ॥
जैन-इतिहास के उन ज्योतिर्धर नक्षत्रों के जीवनों को चित्रित किया आधुनिक मानव-समाज नैराश्य, कुण्ठा, सन्त्रास, विघटन आदि
है, जिनका जीवन प्रेरणाप्रद रहा है। कवि के काव्य का आधार भयंकर व्याधियों से पीड़त है। आपश्री की दृष्टि से उन व्याधियों से
सदाचार, सत्य, अहिंसा आदि मानवीय सद्गुणों का प्रकाशन है। मुक्त होने के लिए तप, त्याग, वैराग्य-ये साधन संजीवनी बूटी के
आपश्री का काव्य-साहित्य भाषा, अलंकार, कला आदि दृष्टियों से समान हैं। यदि मानव इन सद्गुणों की उपासना करे तो उसका
सुन्दर ही नहीं, अति सुन्दर एवं श्रेष्ठ है। जीवन आशा व उल्लास से भर सकता है। आपश्री ने अपने काव्य आपश्री के काव्य की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैंमें सर्वत्र यही प्रेरणा दी है।
१. भाषा भावों को वहन करने में पूर्ण सक्षम है। आपश्री की काव्य शैली की भाषा प्रवाहपूर्ण व प्रभावशाली है।। २. चिन्तन में स्पष्टता व तेजस्विता है। शब्दों का सुन्दर संयोजन, विचारों का सुगठित स्वरूप और
३. काव्य में लयात्मकता के साथ मनोहारी सहज तुकान्तता अभिव्यक्ति की स्पष्टता आपकी सजग शिल्प-चेतना का स्पष्ट
भी है। उदाहरण है। आपके काव्य में सहजता, तन्मयता और प्रगल्भता का सुन्दर संयोजन हुआ है।
४. कविता में शब्दाडम्बर नहीं है, तथा वह सहज और
हृदयग्राही है। भाषा की दृष्टि से आपश्री का काव्य-साहित्य हिन्दी, राजस्थानी
५. काव्य का उद्देश्य और लक्ष्य स्पष्ट है। और संस्कृत में रहा है। समय-समय पर आपश्री ने राजस्थानी भाषा में भी प्रकीर्णक कविताएँ लिखी हैं। जैन-साधना में तप का
६. गहन-गंभीर बात को संक्षेप में सूक्ति रूप में कहने में कवि अत्यधिक महत्व रहा है। जब बहनें तप करती हैं, तब उन्हें भाई
पूर्ण दक्ष है। की सहज स्मृति हो आती है। आपने बहन की भावना का चित्रण ७. काव्य की मात्रा जहाँ विपुल है वहाँ पर काव्य-कला की राजस्थानी भाषा में इस प्रकार किया है
श्रेष्ठता व ज्येष्ठता भी अक्षुण्ण है।
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