Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 676
________________ 09000 Umes69 160000000000 0000000000 No.06.000000000000000000 230046 ROPDOE0 BPO0POPo090DDD000000000% 9:2004 20000 | ५४२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ विशेष तपश्चरण) करने वाला, सबका प्रिय करने वाला और जिनदास गणि चूर्णि में स्पष्टीकरण करते हैं कि गुरुजनों से शिल्प सबके साथ प्रिय मधुर बोलने वाला, शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्त कर | आदि सीखने पर, वस्त्र, भोजन, माला आदि से उनका सम्मान, सकता है।३३ सत्कार करना, उनके कथनानुसार वर्तन करना-शिष्य अपना कर्तव्य इसी प्रसंग में शिक्षार्थी की १५ चारित्रिक विशेषताओं पर भी समझता है। तो जिन गुरुजनों से शिष्य जीवन-निर्माण और आत्म विचार किया गया है जिनके कारण वह सुविनीत कहा जाता है विकास की शिक्षा प्राप्त करता है, उनका सत्कार सम्मान करना और गुरुजनों के समीप रहकर शिक्षा प्राप्त कर सकता है। संक्षेप में विनय करना और उनका आदेश पालन करना तो परम सौभाग्य वे इस प्रकार हैं-३४ का कार्य मानकर गुरुजनों की आज्ञा सदा शिरोधार्य करना ही चाहिए। १. जो नम्र है। __दशवैकालिक की वृत्ति से यह स्पष्ट होता है कि विद्याध्ययन २. अचपल है। सम्पन्न होने पर छात्र के माता-पिता तथा छात्र गुरुजनों, आचार्यों ३. दंभी नहीं है। को भोजन, वस्त्र, अर्थदान, प्रीतिदान आदि द्वारा सम्मानित करते ४. अकुतूहली-तमाशबीन नहीं है। थे। राजा द्वारा उनके जीवन भर की आजीविका का प्रबन्ध भी किया जाता था। ५. किसी की निंदा नहीं करता है। अन्तकृद्दशा सूत्र में अणीयस कुमार का विद्याध्ययन पूर्ण होने ६. क्रोध आने पर उसे तत्काल भुला देता है, मन में क्रोध नहीं पर नाग गाथापति कलाचार्य का सम्मान करता हैरखता, शीघ्र शान्त हो जाता है। - तं कलायरियं मधुरेहिं वयणेहिं विपुलेणं वत्थ-गंध ७. मित्रों के प्रति कृतज्ञ रहता है। मित्रता निबाहना जानता है। मल्लालंकारेण सक्कारेति, सम्माणेति '' विपुलं जीवियारिंह ८. ज्ञान प्राप्त करने पर अहंकार नहीं करता। पीइदाणं दलयंति (३/१) ९. किसी की स्खलना या भूल होने पर उसका तिरस्कार एवं अणीयस कुमार के माता-पिता कलाचार्य का मधुर वचनों से उपहास नहीं करता। सम्मान करते हैं, विपुल वस्त्र गंध माला अलंकार (आभूषण) प्रदान कर सत्कार और सम्मान करते हैं, तथा सम्मानपूर्ण जीविका योग्य act १०. मित्रों पर क्रोध नहीं करता, सहाध्यायियों से झगड़ता विपुल प्रीतिदान देते हैं। 30 नहीं। 624 इस प्रकार देखा जाता है कि प्राचीन काल में विद्यादाता ११. मित्र के साथ अनबन होने पर भी उसके लिए भलाई की गुरुजनों का समाज में सर्वाधिक सम्मान और सत्कार किया जाता बात करता है। एकान्त में भी उनकी निंदा नहीं करता। था और जीवन निर्वाह की कोई समस्या उन्हें चिन्तित नहीं १२. जो कलह या मारपीट नहीं करता। करती थी। १३. जो स्वभाव से कुलीन और उच्च है। विद्यार्थी जहाँ गुरुजनों के प्रति समर्पित होता था, वहाँ गुरुजन भी विद्यार्थी के प्रति पितृवत् वात्सल्य रखते थे। गुरु-शिष्य के १५. बुरा कार्य करने में जिसे लज्जा अनुभव होती है। 1600 सम्बन्ध पिता-पुत्र की भाँति मधुर और स्वार्थ रहित-आत्मीय होते १५. जो अपने आपको संयत और शान्त रख सकता है। थे। दशवैकालिक में बताया है जो शिष्य गुरुजनों को विनय, भक्ति गुरुजनों के प्रति आदर व कृतज्ञता एवं समर्पण भाव से प्रसन्न करता है, गुरुजन भी उसे उसी प्रकार योग्य मार्ग में नियोजित करते हैं, जैसे पिता अपनी प्यारी पुत्री को जैन शिक्षा पद्धति पर शिक्षार्थी के मानसिक गुणों के विकास में । योग्य कुल में स्थापित करता है।३६ सर्वाधिक महत्व की बात है, गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता तथा आदर इस सन्दर्भ में आचार्य विनोबा भावे का यह कथन भी बड़ा भावना। दशवैकालिक सूत्र मे बताया है सटीक है-गुरु-शिष्य के बीच माता और पुत्र जैसा मधुर सम्बन्ध जो सुकुमार राजकुमार उच्च कुलीन शिष्य गुरुजनों से लौकिक होना चाहिए। माता बालक को स्तनपान कराती है तो क्या वह शिक्षा, शिल्प आदि सीखते हैं, गुरुजन उन्हें शिक्षाकाल में कठोर अभिमान या एहसान अनुभव करती है कि मैं स्तनपान कराती हूँ। बंधन, ताडना, परिताप आदि देते हैं फिर भी शिष्य उनका सत्कार नहीं? इसमें दोनों को ही आनन्द का अनुभव होता है; और दोनों करते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं, तथा प्रसन्न करके उनके निर्देश के के बीच मधुर वात्सल्य रस बहता है। अध्ययन-अध्यापन में अनुसार वर्तन करते हैं।३५ इस पर टिप्पण करते हुए आचार्य गुरु-शिष्य की भी यही भूमिका होनी चाहिए। 5:00.00 9080 00 B002 0:06 10.0I.ORDA00940 FD6:00:00 Dangducation Clicohar

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