Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 763
________________ SODDOOOD.000000 10000000000०० Soksat | जन-मंगल धर्म के चार चरण भूकम्प कैसे रोका जाये ? -मानिकचन्द नवलखा 00 0000 वैज्ञानिकों व अभियन्ताओं के गहराई से कई शोध किये जाने | भी जोड़ दे (जो टापू पास-पास हो) समुद्र में नजर आ सकती है। के बावजूद भूकम्प को रोकने के प्रयासों में सफलता न प्राप्त हुई। | इन मछलियों का व समुद्र तल व नीचे गहराई पर कई अन्य इसका कारण है कि भिन्न-भिन्न प्रकार के चौरासी लाख जीवों का मछलियों व जीवों का कार्य कीचड़ साफ करने में व मन्थन के वेग वर्णन जो कुछ श्रमण धर्मावलम्बी, अहिंसा महाव्रत पालने हेतु बढ़ाने में काफी उपयोगी होता है। जो मन्थन, पृथ्वी के नीचे गहराई गहराई से समझाने का प्रयास करते हैं, उसे आधुनिक वैज्ञानिक, पर दरारे, नाले, खड्डे आदि को समुद्र तल के काफी नीचे का पानी प्रचलित हिंसक आदतों में फँसे रहने के कारण स्वार्थवश, समझने । पहुँचाने में उपयोगी होता है व मछलियाँ कीचड़ खाने हेतु दरारों का प्रयास न करना व धर्म का विज्ञान से समन्वय करने का को भी साफ करने में अपनी ऊर्जा से मदद करती है। पानी के इस वातावरण तैयार न हो सका। प्रत्येक जीव किसी उपयोगी कार्य के सम्बन्ध व बहाव से पृथ्वी के अन्दर का तापक्रम का सन्तुलन बना लिए ही जन्म लेता है व पर्यावरण को सुचारू रूप से रखने में भी । रहता है। यदि यह सन्तुलन टूट जावे व किसी अमुक जगह पर कई जीव उपयोगी हो सकते हैं। ऐसे कई कार्य यदि मशीनों व तापक्रम जरूरत से ज्यादा बेहद बढ़ जावे तो पानी कम होने पर यन्त्रों से किये जावे तो खरबों डॉलर की आवश्यकता होगी, जो भाप में बदलते हुए गैस का गुब्बारा-सा बन कर दबाव बढ़ता ही कार्य कई जीव बिना अधिक खर्चे के सावधानी रखने से भी कर जाता है। जो स्वभाव परिणत उदार (स्थूल) बड़े पुद्गलों के टकराने सकते हैं। पर आधुनिक मानव खरबों डॉलर प्राप्त करने की । से तोड़ते हुए कम्पन्न पैदा करते हैं। क्योंकि कीचड़ के साफ न होने कोशिश करेगा पर स्वार्थ वश जीवों पर सावधानी बरतना ठीक न से सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं। हिन्द महासागर, गंगा नदी, अरब समझेगा। पानी या समुद्र के जीवों का भण्डार, ऊर्जा हेतु कई कार्यों सागर व बंगाल की खाड़ी में व ब्रह्मपुत्रा में मछलियों के कम होने में उपयोगी हो सकता है जो कार्य मशीनों से कठिन व अति । पर भूकम्प की संभावना बढ़ जाती है। चूँकि संसार के धनी प्रदेश खर्चीला, असम्भव सा नजर आता है। पर मानव का स्वार्थ उन जरूरत से ज्यादा खाने हेतु मछलियाँ पकड़वाते हैं, मछलियाँ बहुत जीवों को बचाने में बाधक हो जाता है। कम होती जा रही है। ऊर्जा का उपयोगी भण्डार कम होने से यानी इस पृथ्वी के अन्दर भी गहराई पर कई खड्डे, दरारे, नाले, ताकतवर बड़ी मछलियों की कमी के कारण भूकम्प आता है, खाद नदियां व तालाब कई जगहों पर होते हैं जिनका सम्बन्ध समुद्र के कम हो जाता है व मानसून का रुख भी बदल जाता है। भूकम्प को रोकने के लिए समुद्र के जीवों को कम से कम छेड़ा जावे। यह पानी से गहराई पर समुद्र तल पर व नीचे होता है। संसार में ७५ प्रतिशत से ज्यादा जगह समुद्रों ने ले रखी है। समुद्र के पानी व | धारणा कि मछलियाँ आदि न पकड़ने से खाद्य पदार्थ कम होंगे नदियों के पानी का मन्थन, तापक्रम की भिन्नता व वायु के प्रभाव | गलत है, क्योंकि मछली के साथ चावल खाने की खपत बढ़ जाती व जीवों की ऊर्जा आदि से, वेग से होता रहता है जो पृथ्वी के है। दाल से चावल कम खाया जाता है। मछली अति तामसिक होने आन्तरिक तापक्रम को प्रभावित करता है। पानी के असंख्य जीव { से आबादी बढाती है, मनुष्य की उम्र कम होती है आदि आदि। मछलियाँ, मगरमच्छ आदि पृथ्वी व समुद्र के आन्तरिक सम्बन्धों को (भा. विज्ञान कांग्रेस में ७-१-९४ पढ़े गये शोध पत्र के हिन्दी स्वच्छ रखने में, पानी के बहाव व मन्थन को बनाये रखने में, अनुवाद के कुछ अंश उपरोक्त लिखित लेख में दिये गये हैं।) खरबों किलोवाट बराबर ऊर्जा के उपयोग से मदद करते हैं। पता : मछलियों की ऊर्जा का मुकाबला मशीनों की ऊर्जा से नहीं हो सकता। व्हेल मछलियाँ किसी जमाने में एक किलोमीटर से ज्यादा मानिक चन्द नवलखा लम्बी होती थी। यदि उन व्हेल-मछलियों को न पकडा जावे तो ए-४९, जनता कालोनी, आज भी काफी लम्बी व्हेल मछलियाँ जो एक टापू को दूसरे टापू से जयपुर ३०२ ००४ (राज) मनोबल कुछ मनुष्यों का तो स्वभाव से ही क्षीण होता है और कुछ का उसके संगी-साथी क्षीण कर देते हैं। * दिमाग में धर्म का सहारा चाहिये और दिल में धर्म के प्रति विश्वास चाहिये। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि करतात JOTRASTRisneticoa30003000000000000000007matedgedeodily 00000000000000

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