Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 813
________________ | परिशिष्ट ६६५ । CON 0.0.0.00 05ODA 06-0:00 साधना के शिखर पुरुष उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ गुरुभक्त उदारमना सहयोगदाता सज्जनों का चित्र-परिचय एवं शुभ नामावली श्री रमेशभाई शाह : दिल्ली आपके महेन्द्रकुमार जी और देवेन्द्रकुमार जी ये दो भाई भी हैं और सविता रानी, सुदर्शनादेवी, ऊषादेवी और मधु जैन ये आपकी धार्मिक जीवन की सबसे बड़ी पहचान है सरलता और । चार बहिनें हैं। श्रद्धेय उपाध्यायश्री के प्रति आपकी अनंत आस्थाएँ देव-गुरु-धर्म के प्रति आस्था। जिस जीवन में सरलता, भक्ति और थीं। प्रस्तुत ग्रन्थ में आपका अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक उदारता है वह जीवन धार्मिकता का पर्याय बन जाता है। श्री । साधुवाद। रमेशभाई शाह के जीवन में ये गुण विशेष रूप से पल्लवित हुए हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में सदा सहयोग देते रहते हैं। आप श्री शांतिलाल जी लक्ष्मीलाल जी तलेसरा : सौराष्ट्र में धोराजी के निवासी हैं किन्तु ४० वर्ष से भारत की जसवंतगढ़ राजधानी दिल्ली में व्यवसाय हेतु संलग्न हैं। आपके पूज्य पिताश्री का नाम प्रभुलालभाई और मातेश्वरी का नाम धनकुँवर बेन है। का नाम धनऊवा बेन है। मेवाड़ अपनी आन, बान और शान के लिए सदा विश्रुत रहा आपका पाणिग्रहण बम्बई निवासी स्व. श्री प्रभुदासभाई की सुपुत्री । है। वहाँ पर दानवीर, धर्मवीर सदा पैदा होते रहे हैं। वीर सेनानी मालतीबहिन के साथ संपन्न हुआ। मालतीबहिन बहुत ही की तरह कर्त्तव्य-पथ पर निरन्तर बढ़ने में गौरवानुभूति करते रहे धर्म-परायणा महिला थीं। अ. सौ. मालतीबहिन भी देव-गुरु-धर्म के । हैं। मेवाड़ के शताधिक व्यक्तियों ने साधना-पथ को स्वीकार कर भक्तिभाव रखती थीं। साध-संतों की सेवा एवं स्वधर्मी । अपने जीवन को चमकाया है। कितने ही ज्ञानी, ध्यानी, जपी, तपी, बन्धुओं की सेवा के लिए भी उनकी भावना रहती थी। उनका हृदय । महात्मा, संत वहाँ पर हुए हैं और संतों के प्रति अपार निष्ठा रखने बहुत ही सरल और भावनाशील था। आयुष्य बल क्षीण होने से । वाले श्रावक और श्राविकाओं की भी वहाँ कमी नहीं है। असमय में ही उनका निधन हो गया। आपके दो पुत्र और एक पुत्री श्री शांतिलाल जी लक्ष्मीलाल जी तलेसरा ऐसे ही गुरु चरणों में है। प्रथम पुत्र का नाम केतनकुमार है तथा उनकी धर्मपत्नी का नाम समर्पित व्यक्ति हैं। आप मेवाड़ में जसवंतगढ़ के निवासी हैं। आपके सोनल है। उनके दो पुत्र पुरवित और दरसित हैं। पूज्य पिताश्री का नाम शिवलाल जी और मातेश्वरी का नाम द्वितीय सुपुत्र श्री निमेशकुमार जी की धर्मपत्नी का नाम नमिता। नवलबाई था। माता-पिता के धार्मिक संस्कार पुत्रों में पल्लवित और है। रमेशभाई की पुत्री का नाम सौ. कविता है। आपका पूरा । पुष्पित हुए हैं। शांतिलाल जी जीवन के ऊषाकाल से ही परिवार सुसंस्कारों से मंडित है। परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर कर्तव्य-परायण व्यक्ति रहे हैं। कोई भी कार्य हो धार्मिक, सामाजिक मुनि जी म. के प्रति आपकी अनंत आस्था थी और श्रद्धेय समर्पित मन से करते रहे जिससे सफलतादेवी सदा उनका वरण आचार्यश्री के प्रति भी आपका पूरा परिवार श्रद्धानत है। प्रस्तुत करती रही है। ग्रन्थ के प्रकाशन में आपका आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ हम शांतिलाल जी का पाणिग्रहण बगडून्दा निवासी गेरीलाल जी आपके आभारी हैं। लोढ़ा की सुपुत्री धर्मानुरागिनी भंवरदेवी के साथ सम्पन्न हुआ। श्री लाला बेनीप्रसाद जी देवकरण जी नवलखा : आपके तीन सुपुत्र कुन्दनलाल जी, महेन्द्रकुमार जी और दिल्ली तरुणकुमार जी एवं चार सुपुत्रियाँ सौ. रतनकुमारी, सौ. लीलाकुमारी, सौ. लक्ष्मीकुमारी और जसमाकुमारी हैं। कुन्दन जी लाला बेनीप्रसाद जी यों मूल राजस्थान में पाली के निवासी की धर्मपत्नी का नाम सौ. नूतनदेवी है। आपके दो सुपुत्र हैं। रहे। आपके पूर्वज पाली से जीरा (पंजाब) में पहुँचे। जीरा में आपने श्री लक्ष्मीलाल जी सा. की धर्मपत्नी का नाम भाग्य से लक्ष्मीदेवी अपनी शक्ति से केवल प्रतिष्ठा ही प्राप्त नहीं की अपितु पुरुषार्थ से सौ गाँवों के जागीरदार बन गए। आपका पूरा परिवार धर्मनिष्ठ है। आपके एक पुत्र और चार सुपुत्रियाँ हैं। पुत्र का नाम गौरव है परिवार रहा है। आपके सुपुत्र का नाम देवकरण जी जैन है।। 1 और पुत्रियों के नाम कु. पुष्पा, कु. सुमित्रा, कु. अनोखा और नीता कुमारी हैं। आपके दो बहिनें हैं-देवीबाई और कमलाबाई। आपकी धर्मपत्नी सौ. प्रतिभा जैन (जो लाहौर में जन्मी) लाहौर में स्व. लाला खजान्चीमल जी पुस्तकों वाले के नाम से विश्रुत थे आपकी फर्म का नाम है “अमर तारा कॉर्पोरेशन", "अमर उनकी धर्मपत्नी शांतिदेवी की कुक्षी से प्रतिभा जी का जन्म हुआ। शांति सिल्क मिल्स" सूरत है। आपका पूरा परिवार श्रद्धेय आपके सुपुत्र का नाम दिव्यांग और पुत्री का नाम अर्पणा है। उपाध्यायश्री के प्रति अनन्य आस्थावान रहा है। आपने भक्तिभाव से पच्चीस वर्षों से आप जीरा से दिल्ली आ गए। आपका व्यवसाय । विभोर होकर प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन में अनुदान दिया है, तदर्थ हौजरी का है। “एम. डी. ओसवाल हौजरी" दिल्ली। आभारी। 9.5 Vhd 14 S:0 9:00 Rece CDo:00 .00

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