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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ श्री जेठमल जी सा. सुराणा : खण्डप
श्री नेमीचन्द जी सा. कोठारी : पीपाड़ श्री जेठमल जी सा. सुराणा एक धर्मनिष्ठ सुश्रावक हैं। आपके पीपाड़ का स्थानकवासी जैन समाज के इतिहास में महत्त्वपूर्ण पूज्य पिताश्री का नाम मन्नीलाल जी और मातेश्वरी का नाम स्थान है जहाँ पर जीवराज जी म. ने सर्वप्रथम क्रियोद्धार किया हरकबाई है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सोहनीबाई है। था। नेमीचंद जी सा. कोठारी उसी पीपाड़ की पवित्र भूमि में जन्मे आपके ज्येष्ठ भ्राता का नाम बादरमल जी. सा. है। आपके दो हैं। आपके पूज्य पिताश्री का नाम बच्छराज जी सा. और मातेश्वरी पुत्रियाँ और दो पुत्र हैं। पुत्रियों के नाम इस प्रकार हैं-सौ. का नाम हीराकुंवर था। आपकी धर्मपत्नी का नाम सीतादेवी है, जो पिस्तादेवी और सौ. कमलादेवी। आपके ज्येष्ठ पुत्र का नाम बहुत ही धर्म-परायणा सुश्राविका थीं। आपके दो सुपुत्र हैंअमृतलाल जी और उनकी धर्मपत्नी का नाम पुष्पादेवी है। उनके दो निहालचंद जी और ज्ञानचंद जी। दोनों भाइयों की जोड़ी पुत्रियाँ हैं ममता और शिल्पी एवं दो पुत्र हैं संदीप और विक्रम। राम-लक्ष्मण की तरह है। दूसरे पुत्र गौतम जी हैं उनकी धर्मपत्नी का नाम सौ. ललितादेवी __ निहालचंद जी की धर्मपत्नी का नाम सौ. सरितादेवी है। आपके और पुत्री का नाम हेमलता है।
अभय और ललित दो पुत्र हैं। अभय जी की धर्मपत्नी का नाम आप राजस्थान में खण्डप के निवासी हैं जहाँ पर आचार्यसम्राट् । अल्पा है और दो पुत्रियाँ हैं-सौ. संगीता और सुनीता। श्री देवेन्द्र मुनि जी म. ने दीक्षा ग्रहण की थी। आपका पूरा परिवार ज्ञानचंद जी की धर्मपत्नी का नाम सौ. सुरजदेवी है। उनके दो श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री के प्रति पूर्ण श्रद्धानिष्ठ रहा है। पुत्र हैं-पंकज और सौरभ। प्रस्तुत ग्रंथ में आपका सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद। नेमीचंद जी सा. के छह पुत्रियाँ हैं-सौ. पुष्पादेवी, सरला,
गुलाबदेवी, सुशीला, सौ. रसिला और श्रीमती बसंतीदेवी। श्री धनसुखभाई मोहनलाल जी डोशी : बम्बई आपका पूरा परिवार परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
जी म. के प्रति सर्वात्मना समर्पित है। प्रस्तुत ग्रंथ हेतु आपका ___ श्री धनसुखभाई बहुत ही धर्मनिष्ठ सुश्रावक हैं। आपके पूज्य
आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद। पिताश्री का नाम मोहनलाल जी डोशी और मातेश्वरी का नाम धर्ममूर्ति शान्ताबहिन है। माता-पिता के धर्म और आध्यात्मिक श्री जयचंदलाल जी वेद : नारनौल संस्कार आपमें पल्लवित और पुष्पित हुए। आपकी धर्मपत्नी का
श्री जयचंदलाल जी वेद के पूज्य पिताश्री का नाम माणकचंद नाम सौ. सुमनबहिन है। आपके पुत्र का नाम रशेश और पुत्री का
जी था और माता का नाम था रूपाबाई। आपकी धर्मपत्नी का नाम
जी था और माता नाम स्मिता है। आप तीन भाई हैं अरुणकुमार और अश्विनीकुमार मेंटीबाई है। आपके पाँच पब नेमीचंट जी पारसमल जी श्रीचंद तथा आपकी चार बहिनें हैं-मंजुलाबहिन, मधुकान्ताबहिन, जी. पनमचंद जी और उम्मेदकमार जी। ज्योतिबहिन और भारतीबहिन। आप मूल निवासी सौराष्ट्र के हैं।
नेमीचंद जी की धर्मपत्नी का नाम प्रेमलता है। उनके एक पुत्र वर्तमान में बम्बई में आपका व्यवसाय है। श्रद्धेय आचार्यश्री और
और एक पुत्री है जिनके नाम हैं-नवीन और सिमी। उपाध्यायश्री के प्रति आपकी अपार आस्था है। प्रस्तुत ग्रंथ हेतु आपका सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद।
पारसमल जी की धर्मपत्नी का नाम विजयादेवी है। उनके दो
पुत्र हैं-रमणीश और पंकज तथा एक पुत्री है रुचिका। श्रीमती शांताबहिन मोहनलाल जी डोशी : बम्बई
श्रीचंद जी की धर्मपत्नी का नाम किरण है। उनके पुत्र का नाम शांताबहिन बहुत ही धर्म-परायणा सुश्राविका हैं। आपके जीवन कमल है तथा पुत्रियों के नाम पिंकी और निशा हैं। के कण-कण में मन के अणु-अणु में आध्यात्मिक भव्य भावना सदा पूनमचंद जी की धर्मपत्नी का नाम मंजूदेवी है। उनके दो पुत्रअँगडाइयाँ लेती रहती है। आप शांताक्रुज, बम्बई में महिलाओं की हेमन्त एवं मनीष और एक पुत्री है रेखा। प्रमुखा हैं। आपकी प्रबल प्रेरणा से शांताक्रुज में धर्म की भव्य
उम्मेदकुमार जी की धर्मपत्नी का नाम सीमा है। उनके पुत्र का भावनाएँ विकसित हुई हैं। धर्म स्थानक के निर्माण में भी आपका
नाम गौतम है और पुत्री का नाम वीणा है। अपूर्व योगदान रहा है। सेठ मोहनलाल जी डोशी भी बहुत ही उदार हृदय के धनी सुश्रावक थे। आपके तीन सुपुत्र हैं-धनसुखभाई,
आप राजस्थान में खण्डेला के निवासी हैं और ३५ वर्षों से अरुणकुमार और अश्विनीकुमार तथा चार पुत्रियाँ हैं-मंजुलाबहिन,
नारनौल में रह रहे हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में आपका सहयोग प्राप्त हुआ, ज्योतिबहिन, मधुकान्ताबहिन और भारतीबहिन। शांताक्रज. बंबई में तदर्थ साधुवाद। आचार्यश्री के प्रति आपकी अनंत आस्था है। आपका निवास है। परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के प्रति आपकी अनन्य आस्था रही है एवं आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी । श्री बाबूलाल जी रांका : गढ़सिवाना म. के प्रति आपकी अपूर्व श्रद्धा है। प्रस्तुत ग्रंथ प्रकाशन हेतु आपका गढ़सिवाना का रांका परिवार बहुत ही बांका रहा है। रांका आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद।
। परिवार के संबंध में वहाँ पर अनेक अनुश्रुतियाँ भी प्रचलित हैं।
VODOOL
पOURCORRO-
2005
2006-00-00
582600
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