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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
शाकाहार : एक वैज्ञानिक जीवन शैली
-मुनि नवीनचन्द्र विजय
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संसार के प्रत्येक प्राणी का जीवन आधार आहार है। प्रत्येक । देवताओं का आहार चार प्रकार का कहा है-(१) अच्छे वर्ण प्राणी किसी रूप में आहार ग्रहण करते हैं। उन आहारों के प्रकार | वाला। (२) अच्छे गन्धवाला। (३) अच्छे रसवाला। (४) अच्छे भिन्न हो सकते हैं। पेड़ और पौधे जमीन के भीतर से आहार लेते स्पर्शवाला। हैं। पानी में रहने वाले प्राणियों के लिए पानी ही आहार है।
आहार प्रत्येक प्राणी की प्रथम आवश्यकता है। संसार का कोई सूत्रकृतांग और स्थानांग आदि कई जैन सूत्रों में आहार के भी प्राणी बिना आहार ग्रहण किए जीवित रहने का दावा नहीं कर भेद-उपभेदों का विस्तृत वर्णन है। द्रव्य आहार के अन्तर्गत सचित्त, । सकता। जैन दर्शन के अनुसार ‘आहार संज्ञा' प्रत्येक जीव के साथ अचित्त और मिश्र आहारों का प्रतिपादन हुआ है। भाव आहार के चिपकी हुई है। अन्तर्गत ओज आहार, लोम आहार और प्रक्षिप्त आहार आते हैं।
मनुष्य का प्रमुख आहार अन्न है। यह अन्न उसके जीवन का ओज आहार अर्थात् जो जन्म के प्रारंभ में लिया जाता है। लोम
आधार है। ब्राह्मण-ग्रन्थों ने इस अन्न को ब्रह्म कहा है। तैत्तरीय आहार अर्थात् जो त्वचा या रोम के द्वारा लिया जाता है। प्रक्षिप्त
आरण्यक में कहा है-अन्नं ब्रह्मेत व्यजानात् अर्थात् यह अच्छी तरह आहार अर्थात् जो शरीर में इन्जेक्शन आदि के द्वारा प्रक्षिप्त किया
जान लीजिए कि अन्न ही ब्रह्म है। जाता है।
यह ब्रह्म अन्न, जल और फल है। जिसे हम शाकाहार कहते हैं। ___ स्थानांग सूत्र में नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवताओं के
वास्तव में वही ब्रह्म है। यह शाकाहार ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ और आहार के विषय में कहा गया है-णेरइयाणं चउव्विहे आहारे
प्राकृतिक आहार है। इसे हम यदि मनुष्य की एक वैज्ञानिक जीवन पण्णत्ते, तं जहा-इंगलोवमे, मुम्मुरोवमे, सीयले, हिमसीयले।
शैली कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। सृष्टि के प्रारंभ काल से लेकर नरक में रहने वाले प्राणियों के आहार चार प्रकार के आज तक मनुष्य के जीवन का प्रमुख आधार शाकाहार रहा है। कहे हैं-(१) अंगारों के समान थोड़ी देर तक जलाने वाला। (२) यह धार्मिक और अहिंसक आहार है। मुमुरे के समान अधिक समय तक दाह उत्पन्न करने वाला। (३)
शाकाहार का विरोधी आहार मांसाहार है। शाकाहार की शीतल-सर्दी उत्पन्न करने वाला (४) हिमशीतल-हिम के समान
विकृति मांसाहार है। यह मनुष्य की अवैज्ञानिक और अप्राकृतिक अत्यन्त शीतल।
जीवन शैली है। बिना हिंसा के मांस नहीं बनेगा और हिंसा से ___तिरिक्खजोणियाणं चउब्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-कंकोवमे, .
बढ़कर कोई पाप नहीं है। विलोवमे, पाणमंसोवमे पुत्तमंसोवमे।
भारत की अहिंसक और सात्विक संस्कृति ने मांसाहार को तिर्यंचों का आहार चार प्रकार का कहा है-(१) कंक के
। मनुष्य के आहार के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया। समान-सुभक्ष्य और सुखकारी परिणाम वाला। (२) बिल के
___ भारतीय संस्कृति ने 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की उद्घोष की है। समान-बिल में वस्तु की तरह (रस का स्वाद दिए बिना) सीधा पेट में जाने वाला। (३) मातंगमांस के समान-मातंगमास के समान घृणा
सभी जीवों को अपने समान मानो। जैसा हमें दुःख अनुभव होता है पैदा करने वाला। (४) पुत्रमांस के समान-पुत्रमांस के समान अत्यन्त
वैसा ही दूसरा अनुभव करता है। इसलिए कभी किसी को दुःख न
दो। यहीं से अहिंसा और शाकाहार का सूत्रपात होता है। यही दुःख से खाया जाने वाला।
कारण है कि हमारी संस्कृति ने मांसाहार को कभी प्रश्रय नहीं मणुस्साणं चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-असणे, पाणे, दिया। मांसाहार यदि आया भी है तो वह संस्कति की विकति के खाइमे, साइमे।
रूप में आया है और इसे सदैव पाप ही माना गया है। लोग ___ मनुष्यों का आहार चार प्रकार का कहा है-(१) असन, दाल, मांसाहार को घृणा की दृष्टि से देखते हैं और इसे तिर्यंच एवं रोटी, भात आदि। (२) पान-पानी आदि पेय पदार्थ। (३) खादिम- राक्षसों का आहार मानते हैं। फल-मेवा आदि। (४) स्वादिम-पान-सुपारी आदि मुँह साफ करने की
इस वैज्ञानिक सत्य की कोई उपेक्षा नहीं कर सकता कि
आदमी जैसा आहार ग्रहण करता है वैसा ही बनता है। आहार का देवाणं चउबिहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-वण्णमंते, गंधमंते, प्रभाव व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व पर पड़ता है। उसका समग्र रसमंते, फासमंते।
जीवन व्यवहार और आचरण उसके आहार के अनुरूप ढला
चीजें।
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