Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 744
________________ DOOD H Pabi.PNOR SC 2990SON SE६०८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । दूसरा तर्क यह था कि गली-गली में पशु काटे जाते हैं। उनके । रुक गए। सुधीर ने वहाँ काउण्टर पर खड़ी लड़कियों से कहा500DDA काटने का ढंग बड़ा घिनौंना है। उसका खून चारों ओर बहता है। "मेरे माता-पिता यहाँ हैं वे पूर्ण शाकाहारी हैं। उन्हें कुछ ऐसी चीजें हम कत्लखानों के द्वारा, इस कार्य को वैज्ञानिक ढंग पर करना खाने को दे दो, जिनमें अण्डा भी न हो।" चाहते हैं। उनमें से एक लड़की ने उत्सुक होकर पूछा-"तुम्हारे माता___हमने उनसे कहा कि मांस से अधिक मांग तो वेश्याओं का पिता स्वस्थ तो हैं न?" खुले आम नाच कराने का है। क्या तुम उसकी व्यवस्था करोगे? "तुम्हीं उनके पास जाकर पूछ लो।" सुधीर ने उत्तर दिया। तुम्हारा यह कहना कि मांस खाने वालों को रोक दो, हम कत्लखाने बन्द कर देंगे, बेमानी है। तब तुम कत्लखाने क्या बन्द करोगे, वे एक लड़की मेरे पास आई। युवा थी। बोली-"आपके बेटे का अपने आप बन्द हो जायेंगे। कहना है कि आप पूर्ण शाकाहारी हैं। आपकी उम्र कितनी है ?" जहाँ तक तुम्हारे इस तर्क का प्रश्न है, कि तुम वैज्ञानिक ढंग । यह दश वर्ष पहले की घटना है। मैंने कहा-"यह मेरा पर कत्ल करना चाहते हैं, वह भी कोई अर्थ नहीं रखता। कल बहत्तरवाँ वर्ष है।" बहर 988 कत्ल है, चाहे अपने देश की बनी छुरी से करो, चाहे विदेश की वह लड़की मेरी ओर मुँह फाड़ कर देखती रह गई। फिर बनी छुरी से। बोली-“देखिये, हमारे माता-पिता कहते हैं कि तुम मांस नहीं हमारा तर्क उनके गले नहीं उतरा। जिनकी आँखों पर स्वार्थ । खाओगी तो कमजोर हो जाओगी और जल्दी मर जाओगी।" का पर्दा पड़ा होता है, वे प्रकाश नहीं देख सकते। दुर्भाग्य से मैंने हँसकर कहा-"तुम्हारे माता-पिता और तुम कितने अज्ञान कत्लखाने बड़ी तेजी से देश में बढ़ते जा रहे हैं ? में हो, यह प्रत्यक्ष देख रही हो।" मजे की बात यह है कि विदेशों में लोग शाकाहार की ओर लड़की विस्मित होकर चली गई। अधिकाधिक आकर्षित हो रहे हैं, परन्तु हमारे देश में उल्टा हो रहा शाकाहार के प्रभावशाली प्रचार के द्वारा लोगों के इस भ्रम है। हाल ही के अपने कैनेडा और अमरीका-प्रवास में हमने देखा और अज्ञान को दूर करना होगा। बड़े-बड़े चार्ट बनाकर लोगों को कि जगह-जगह पर शाकाहारी भोजन की व्यवस्था है, नये-नये समझाना होगा कि मांस में जितने पोषक तत्त्व माने जाते हैं, उनसे शाकाहारी होटल और रेस्तरां खुल रहे हैं, परन्तु हमारे देश में । अधिक पोषक तत्त्व शाकाहारी भोजन में हैं। इसको प्रदर्शिनी द्वारा मांसाहार का प्रचार बराबर बढ़ रहा है। दिखाया जाना आवश्यक है। ऐसी दशा में प्रश्न उठता है कि कत्लखानों को किस प्रकार भारत-भूमि भगवान महावीर की भूमि है, महात्मा गांधी की रोका जा सकता है? इसका एक ही उत्तर है-देशव्यापी आन्दोलन भूमि है। महावीर की जानकारी कम लोगों को है, लेकिन गांधी से। सरकार से कह दिया जाय कि हम अपना मत उस दल को और उसकी अहिंसा को तो सारी दुनियाँ जानती है। जानती ही नहीं देंगे, जो कत्लखानों को बंद करेगा। सरकार मत के मूल्य को भली मानती भी है। उनके महान व्यक्तित्व और उनके महान आदर्शों को प्रकार जानती और समझती है। जहाँ उसे यह पता चलेगा कि सकल विश्व के लिए कल्याणकारी मानती है। उसका अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है, वह तत्काल उस दिशा में कदम उठावेगा। ऐसी पवित्र भूमि पर निर्दोष-निरीह मूक प्राणियों का खून बहे, उनकी निर्मम हत्या हो, इससे अधिक लज्जा और कलंक की बात इस प्रकार पहला उपाय है सरकार पर प्रत्येक आन्दोलन द्वारा क्या हो सकती है ? विज्ञान और तकनीक की दृष्टि से चरम शिखर प्रभाव डालना। दूसरा उपाय है पशुओं की निकासी पर प्रतिबंध पर पहुँची दुनियाँ इतनी अमानवीय इतनी संवेदनहीन हो, इससे लगाना। कत्लखाने उन पशुओं पर चलते हैं, जो गाँवों से बड़ी बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है? संख्या में भेजे जाते हैं ? इसके लिए गाँव-गाँव में ऐसे संगठन बनाने होंगे, जो एक भी पशु को बाहर न जाने दें। इसमें युवा-शक्ति और एक समय था जब कि प्रेम और जीव दया के क्षेत्र में ग्रामों के अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। भारतवासियों ने उत्कृष्ट आदर्श प्रस्तुत किया था। अल्वर्ट स्विट्जर का नाम आज भी आदर से लिया जाता है। उन जैसे अनगिनत तीसरे, देश भर में शाकाहार का प्रचार किया जाय। आज उस व्यक्ति विभिन्न देशों में हुए हैं, जिन्होंने प्राणि मात्र के प्रति अपार दिशा में जो प्रयास हो रहा है, वह पर्याप्त नहीं है। उस संबंध में करुणा प्रदर्शित की। भारत की भूमि में तो सबके कल्याण के गीत कितना अज्ञान है, यह एक दृष्टान्त से स्पष्ट हो जाता है। किसी युग में गाये जाते थे। जन-जन की जिह्वा पर रहता था-"सर्वे कुछ वर्ष पूर्व हम अपने लड़के सुधीर के पास कैनेडा गए थे। भवन्तु सुखिनाः।" संसार के समस्त प्राणी सुखी हों। सर्वे सन्तु एक दिन बाहर से लौट रहे थे तो एक रेस्तरां में चाय पीने के लिए निरामया।' संसार के सभी प्राणी नीरोग हों। ENGER DOO9000633 es Agrication informational 8 5 600 Vales Personal usesonlyH06 DDDO 300-gardaifensity.org RKE0% A000 16-06-30dai ake 200 HNAADIOCOCCASISTUR

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