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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । का माँसाहार से सीधा सम्बन्ध है। आस्ट्रेलिया विश्व का सर्वाधिक में सर्वथा सार्थक और समीचीन प्रतीत होती है। विशेषता इसके माँसाहार वाला देश है। वहाँ १३० किलोग्राम प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति । साथ यह भी जुड़ी रहती है कि इन पदार्थों का दूषित और विकृत खपत तो अकेले गोमांस की ही मानी जाती है। इसी देश में आँतों । होना-साधारणतः दृष्टिगत भी नहीं होता, उसे पहचाना नहीं जा का कैंसर भी सबसे अधिक होता है। इस समस्या के समाधान | सकता। अतः ऐसे हानिप्रद पदार्थों से आत्म रक्षा के प्रयल की स्वरूप विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा शाकाहार को अधिकाधिक आवश्यकता भी नहीं अनुभव होती और उनसे बचा भी नहीं जा अपनाए जाने का परामर्श दिया जा रहा है। अमेरिका के डॉक्टर इ. | सकता है। बी. ऐमारी और इंगलैण्ड के डॉ. इन्हा ने तो अपनी पुस्तकों में ।
उदाहरणार्थ ब्रिटेन में लगभग ५० लाख लोग प्रतिवर्ष यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति भी की है कि अण्डा जहर है। डॉ. आर. जे.
सालेमोनेला से प्रभावित होते हैं। अण्डे व चिकिन की सड़ी हुई विलियम्स (ब्रिटेन) की मान्यता है कि सम्भव है कि आरम्भ में
अवस्था में उनका उपभोग करने से यह फूडपोइजनिंग की घातक अण्डा सेवन करने वाले कुछ स्फूर्ति अनुभव करें किन्तु आगे।
स्थिति बनती है। कुक्कुट शाला के १२ प्रतिशत उत्पाद इस प्रकार चलकर उन्हें मधुमेह, हृदयरोग, एग्जीमा, लकवा जैसी त्रासद
दूषित पाये जाते हैं। गर्भवती महिलाओं का गर्भपात और गर्भस्थ बीमारियाँ भोगनी पड़ती है। अण्डा कोलेस्टेरोल का सबसे बड़ा
शिशु का रुग्ण हो जाना भी इसके परिणाम होते हैं। अण्डा ८° अभिकरण माना जाता है, माँस भी इससे कुछ ही कम है।
सेलसियस से अधिक तापमान में रहे तो १२ घण्टे के बाद वह कोलेस्टेरोल का यह अतिरिक्त भाग रक्तवाहिनियों की भीतरी सतह
सड़ने लग जाता है। भारत जैसे उष्ण देश में तापमान अधिक ही पर जम जाता है और उन्हें संकरी कर देता है। परिणामतः
रहता है और अण्डा कब का है, यह ज्ञात नहीं हो पाता-ऐसी रक्तप्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो जाता है और उच्च रक्त चाप एवं
स्थिति में विकृत अण्डे की पहचान कठिन कार्य हो जाती है। हृदयाघात जैसे भयावह रोग उत्पन्न हो जाते हैं। आँतों का अलसर
न्यूनाधिक रूप में ये दूषित ही मिलते हैं। अण्डे का जो श्वेत कवच अपेंडिसाइटिस और मलद्वार का कैंसर भी माँसाहारियों में अति
या खोल होता है, उसमें लगभग १५ हजार अदृश्य रंध्र (छेद) होते सामान्य होता है। माँसाहार से रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़
हैं जिनमें से अण्डे का जलीय भाग वाष्प बनकर उड़ जाता है और जाती है जो जोड़ों में जमा होकर गठिया जैसे उत्पीड़क रोगों को
। तब अनेक रोगाणु भीतर प्रविष्ट हो जाते हैं और वे अण्डे को जन्म देता है। सामिष भोजन के निरन्तर सेवन से पेचिस, मंदाग्नि
रोगोत्पादक बना देते हैं। एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि आदि रोग हो जाते हैं। कब्ज रहने लगता है, जो अन्य अनेक रोगों
अमेरिका में चालीस हजार लोग प्रतिवर्ष दूषित अण्डों व माँस के को जन्म देता है। आमाशय दुर्बल हो जाता है और आँतें सड़ने लग
सेवन से रुग्ण हो जाते हैं! जाती है। वास्तव में मनुष्य का पाचन संस्थान शाकाहार के अनुरूप ही संरचित हुआ है, माँसाहार के अनुरूप नहीं। त्वचा की स्वस्थता माँसाहार प्राप्ति के प्रयोजन से जिन पशुओं की हत्या की जाती के लिए विटामिन-ए की आवश्यकता रहती है जो टमाटमर, गाजर, है, उनका स्वस्थ परीक्षण नहीं किया जाता। व्यावसायिक दृष्टिकोण हरी सब्जी आदि में उपलब्ध होता है। माँसाहार विटामिन शून्य भी रोगी पशुओं को इस निमित्त निर्धारित कर देता है। पशुओं में
आहार है, अतः एग्जीमा आदि अनेक त्वचा रोग हो जाते हैं, (अण्डों में भी) प्रायः कैंसर, ट्यूमर आदि व्याधियां होती है। मुंहासे निकल आते हैं। मासिक धर्म सम्बन्धी स्त्री रोगों की माँसाहारी इस सबसे परिचित होता नहीं और दुष्परिणामतः दूषित अधिकता भी माँसाहारियों में ही पायी जाती है।
माँस उदरस्थ होकर उपभोक्ता को इसे ही रोग उपहार में दे देता है।
माँसाहारी जब स्वयं चिन्तन करें कि वे कैसे अंधकूप की डगर पर माँसाहार मानव देह की रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी कम कर देता है। परिणामतः रोगी साधारण से रोग का सामना भी नहीं कर
बढ़े चले जा रहे हैं। | पाता और रोग बढ़ते हुए जटिल होता जाता है। एक रोग अन्य । पशु जब वध के लिए वधशाला लाए जाते हैं तो वे बड़े
अनक रोगों को अपना संगी बनाने लगता है। माँसाहार बुद्धि को भयभीत और आतंकित हो जाते हैं। प्राकृतिक रूप से मल विसर्जित मन्द तथा स्मृति को कुण्ठित भी कर देता है। शारीरिक व मानसिक हो जाता है जो रक्त में मिलकर उसे विषाक्त बना देता है। इसी विकास भी सामिष आहार के कारण बाधित हो जाता है।
प्रकार माँस के मल मूत्र, वीर्य, रक्तादि अनेक हानिकारक पदार्थ
मिल जाते हैं। वध से पूर्व भी पशु छटपटाता है, भागने का प्रयत्न माँसाहार के विकार : रोगों के लिए अधिक जिम्मेदार :
करता है, उसके नेत्र लाल हो जाते हैं, नथुने फड़कने लगते हैं, मुँह सामिष पदार्थ स्वयं ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, से फेन आने लगते हैं। इस असामान्य अवस्था में उसके शरीर में रोगों के उत्पादक होते हैं। तिस पर भी यह और बढ़ोत्तरी की बात 1 "एडरी-नालिन" नामक पदार्थ उत्पन्न हो जाता है जो उसके माँस में है कि वे प्रायः दूषित और विकृत अवस्था में प्राप्त होते हैं। यह मिश्रित हो जाता है। इस माँस के सेवन से यह घातक पदार्थ स्थिति माँसाहार को और अधिक घातक बना देती है। "करेला माँसाहारी के शरीर में जाकर अनेक उपद्रव करता है, उसे रूग्ण पहले ही कड़वा और ऊपर से नीम चढ़ा" वाली कहावत इस प्रसंग / बना देता है।
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