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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । मुँह, गला व फेंफड़े के कैंसर के जितने रोगी होते हैं उनमें से । माना जा सकता। शिक्षित महिलाएँ ही अधिक धूम्रपान करती हैं। ९०% ऐसे होते हैं जो जर्दा सेवन के अभ्यस्त होते हैं। इसी प्रकार महिला-छात्रावासों में इस प्रवृत्ति के घातक रूप में विकसित दशा के हृदय रोग से ग्रस्त रोगियों में से भी अन्य कारणों की अपेक्षा १५ दर्शन होते हैं। वास्तव में धूम्रपान को फैशन, विलास और गुना अधिक वे रोगी होती हैं जो धूम्रपान करते हैं। दमा रोग से आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया और महिला भी अपनेपीड़ित हर १० रोगियों में से ९ का कारण तम्बाकू सेवन होता है । आपको पिछड़ी और पुरातन ढरे भी नहीं रखना चाहती। जो भी
और ब्रोकाइटिस (क्रोनिक) रोग को ३०% रोगी धूम्रपान के हो-किन्तु महिलाओं की शरीर रचना अपेक्षाकृत अधिक मृदुल और अभ्यस्त होते हैं। ब्रेब हेमेज, मधुमेह, रीढ़ की हड्डी के रोग आदि कोमल होती है। परिणामतः उनको धूम्रपान से अधिक तीव्रता के भी ऐसे हैं जिनके पीछे धूम्रपान की भूमिका अधिक रहती है। साथ हानियाँ होती हैं। धूम्रपान-जर्दा-सेवन के हानिकारक प्रभाव
__महिला मातृत्व के वरदान से विभूषित होती है। वह जननी इस अप्राकृतिक प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप मानव-तन पर
होती है। उसकी देह के विकार उसकी सन्तति में भी उतरते हैं और अनेक हानिकारक प्रभाव होते हैं। भारत के ख्याति प्राप्त दमा रोग
इस प्रकार भावी पीढ़ी भी विकृत होती है। इस प्रकार महिलाओं विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र सिंह का कथन है कि जो लोग १५ सिगरेट
द्वारा किया जा रहा धूम्रपान दोहरे रूप से घातक सिद्ध होता है। प्रतिदिन की दर से धूम्रपान करते हैं, उनके वक्ष में उतनी विकिरण
चिकित्सकों का मत है कि गर्भवती महिलाओं को तो भूलकर भी रेडियेशन की मात्रा पहुँच जाती है जितनी ३०० एक्सरे करवाने से
धूम्रपान नहीं करना चाहिए। आशंका रहती है कि इससे गर्भ का पहुँचती है। यह रेडियेशन फेफड़ों को दुर्बल बनाता है। उनकी यह
शिशु रुग्ण और दुर्बल हो-वह विकलांग भी हो सकता है। चिकित्सा मान्यता भी है कि चिन्ता और तनाव ग्रस्त लोग धूम्रपान का आश्रय
विज्ञान यह मानता है कि गर्भ का दूसरे से पाँचवें महीने की अवधि 46667 लेते हैं और उन्हें कुछ मानसिक राहत अनुभव होने लगती है,
तो इस दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील रहती है। माता द्वारा किये गये किन्तु ऐसे लोगों को धूम्रपान करना ही नहीं चाहिए-इससे
धूम्रपान के धुएँ का ऐसा घातक प्रभाव शिशु पर होता है कि जन्म 4.30003 DDI हृदयाघात की आशंका तीव्र और प्रबल हो जाती है। जो व्यक्ति दो
के पश्चात् उनमें से अधिकतर आयु इतनी ही रहती है कि वे पैकेट प्रतिदिन की दर से सिगरेट पीते हैं, उनके लिए यह इतनी
पलने से बाहर भी नहीं आते। सौभाग्य से जो इसके पश्चात् भी हानिकारक होती है, जितनी शरीर के भार में ५० किलो की
जीवित रह जाते हैं वे अत्यन्त दुर्बल होते हैं। ऐसे बच्चों में अनावश्यक बढ़ोत्तरी से हुआ करती है। जो अत्यधिक धूम्रपान
रोग-निरोधक क्षमता शून्यवत् रह जाती है। संक्रामक रोगों की करते या तम्बाकू उपभोग करते हैं उनके स्वाद तंतु दुर्बल हो जाते
जकड़ में ऐसे बच्चे शीघ्र ही आ जाते हैं और उनका जीवन संकट हैं। उन्हें स्वाद कम आने लगता है, वे भोजन सम्बन्धी अरुचि से | ग्रस्त बना रहता है। भर उठते हैं। भोजन की मात्रा का कम हो जाना स्वाभाविक है- महिलाओं के धूम्रपान की प्रवृत्ति उनकी प्रजनन क्षमता को ही
और ऐसे लोग दुर्बल होते जाते हैं। धूम्रपान मानव देह की क्षतिग्रस्त कर देता है। बीड़ी-सिगरेट का निकोटीन उनके कारमोनल स्वाभाविक कान्ति को भी नष्ट करता है। जो जितना अधिक इस
सिस्टम को और उनके मस्तिष्क को कुप्रभावित करता है। इसके व्यसन में लिप्त है उसके मुख पर उतनी ही अधिक झुर्रियाँ पड़ने
परिणामतः या तो स्त्री गर्भ धारण कर ही नहीं पाती या इसमें बड़ा लगती हैं, तेज लुप्त होने लगता है और उसे अकाल वार्धक्य घेर
विलम्ब हो जाता है। अनेक बार ऐसा भी होता है कि गर्भाशय के लेता है। धूम्रपान करने वालों की सूंघने की क्षमता तो कम होती
स्थान पर गर्भ नालियों में ठहर जाता है गर्भपात ही इसका जाती है, अनेक रोगों की अत्यन्त प्रभावशाली औषधियाँ भी उनके
परिणाम होता है। सम्बन्धित विज्ञान इसे 'एप्टोपिक प्रेगनेंसी' कहता लिए पर्याप्त लाभकारी नहीं हो पातीं। व्यक्ति की यौन क्षमता पर भी
है। ऐसे प्रसंगों में जिनमें माता धूम्रपान की अभ्यस्त हो-प्रसव तम्बाकू सेवन का बड़ा भारी विपरीत प्रभाव होता है और इस
अवधिपूर्व ही हो जाता है, बच्चे का भार असाधारण रूप से कम कारण वह मानसिक रूप से तनावग्रस्त और हतप्रभ सा हो ।
होता है। उसका आकार भी बहुत छोटा होता है। जाता है।
अनुसंधानों का निष्कर्ष है कि माता द्वारा किया गया धूम्रपान महिलाएँ और धूम्रपान
गर्भस्थ शिशु को मिलने वाली ऑक्सीजन में कमी आ जाती है। इन दिनों महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन बड़ी तीव्रता के जिस थैली में विकासमान शिशु लिपटा रहता है-वह थैली धूम्रपान साथ बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी देशों में तो यह प्रवृत्ति अति } से विषाक्त हो जाती है। धूम्रपान से अनेक विष और विकार माता सामान्य रूप ग्रहण कर चुकी है। हमारे देश में भी इसकी तीव्रता के रक्त में मिल जाते हैं। इसी विषाक्त रक्त से जब शिशु का पोषण बढ़ती जा रही है। ग्रामीण और नगरीय कोई भी क्षेत्र इससे छूटा हो तो शिशु का स्वस्थ होना स्वाभाविक भी नहीं है। उसका विकास हुआ नहीं है। इसके पीछे अबोधता या अज्ञान का कारण भी नहीं अवरुद्ध रहे तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं। ऐसा माना जाता है
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